ग्रेट निकोबार मेगा प्रोजेक्ट पर क्यों उठ रहे सवाल? सोनिया गांधी ने भी किया विरोध

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट पर सवाल (iStock)
कांग्रेस संसदीय दल चेयरमैन सोनिया गांधी ने ग्रेट निकोबार मेगा प्रोजेक्ट पर गंभीर सवाल उठाए हैं। एक लेख में उन्होंने लिखा कि इस प्रोजेक्ट पर हजारों करोड़ रुपये खर्च होंगे, लेकिन इससे द्वीप पर रहने वाले आदिवासी समुदाय और वहाँ की अनोखी प्रकृति को भारी नुकसान पहुंचेगा। क्या है पूरा मामला और क्यों पड़ेगा आदिवासियों पर असर, आइए जानते हैं।
आदिवासी समुदाय पर असर
ग्रेट निकोबार में दो जनजातियां रहती हैं – निकोबारी और शोमपेन। निकोबारी लोग 2004 की सुनामी में पहले ही अपने गाँव छोड़ने पर मजबूर हुए थे। यह प्रोजेक्ट उनके दोबारा बसने के सपने को खत्म कर देगा। शोमपेन जनजाति का तो अस्तित्व ही खतरे में है क्योंकि उनका आरक्षित इलाका सीधे प्रोजेक्ट की जमीन पर आ रहा है।
कानूनों की अनदेखी
• भूमि अधिग्रहण और वन अधिकार जैसे कानूनों की अनदेखी की गई है।
• जल्दबाजी में जनजातीय परिषद से अनापत्ति पत्र लिया गया।
• पर्यावरण की जांच ठीक से किए बिना प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी गई।
प्रकृति को खतरा
• जिस जगह यह प्रोजेक्ट बनना है, वहां समुद्री कछुओं के घोंसले और कोरल रीफ हैं।
• तटीय नियमों के मुताबिक यहाँ निर्माण की इजाजत नहीं है, लेकिन फिर भी सरकार आगे बढ़ रही है।
• इस प्रोजेक्ट में 8.5 लाख से ज्यादा पेड़ काटे जाएंगे और इसकी भरपाई के लिए पेड़ हरियाणा में लगाने की योजना है, जो बिल्कुल बेमानी है।
रिपोर्ट में गड़बड़ियां
• कछुओं की जांच ऐसे समय की गई जब वे अंडे नहीं दे रहे थे।
• विशेषज्ञों की राय को नज़रअंदाज कर रिपोर्ट पास कर दी गई।
• नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की कमेटी ने भी इस पर आपत्ति जताई थी।
क्या बनने वाला है?
• एक बड़ा बंदरगाह (पोर्ट)
• हवाई पट्टी और बिजली संयंत्र
• नई टाउनशिप
यह प्रोजेक्ट निकोबार के जंगल, समुद्र और आदिवासी समुदाय को गंभीर नुकसान पहुँचाएगा। सोनिया गांधी ने कहा कि यह सिर्फ एक विकास योजना नहीं बल्कि देश के पर्यावरण और मूल्यों के साथ विश्वासघात है।
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