जम्मू-कश्मीर: शहीदों को श्रद्धांजलि देने दीवार फांद कर कब्रिस्तान में घुसे CM उमर अब्दुल्ला, पुलिस से भिड़े; देखिए वीडियो

कब्रिस्तान के मुख्य द्वार को फांदकर अंदर घुसे उमर अब्दुल्ला (फोटो- ANI)
जम्मू कश्मीर में आज उस समय एक अजीब वाक्या देखने को मिला जब सीएम उमर अब्दुल्ला एक कब्रिस्तान की दीवार को फांदते दिखे। दरअसल पुलिस ने कब्रिस्तान में एंट्री पर प्रतिबंध लगा रखा था, जिसके बाद उमर अब्दुल्ला पैदल की कब्रिस्तान तक पहुंचे और चारदीवारी को फांद कर अंदर चले गए।
पुलिस और एलजी पर भड़के उमर अब्दुल्ला
इस घटना पर उमर अब्दुल्ला ने उन्हें और उनके दल को शहीदों के कब्रिस्तान में प्रवेश करने से रोकने पर उपराज्यपाल और पुलिस की कड़ी आलोचना की। उमर ने कब्रिस्तान में श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद संवाददाताओं से कहा- "यह दुखद है कि जो सुरक्षा और कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालते हैं, उन्हीं के निर्देश पर हमें यहां ‘फातिहा’ पढ़ने की अनुमति नहीं दी गई। हमें रविवार को घर में नजरबंद रखा गया। जब द्वार खुले तो मैंने नियंत्रण कक्ष से फातिहा पढ़ने की इच्छा व्यक्त की। कुछ ही मिनटों में बंकर लगा दिए गए और देर रात तक उन्हें हटाया नहीं गया। देखिए इनकी बेशर्मी, इन्होंने आज भी हमें रोकने की कोशिश की। इन्होंने हमें धक्का देने की भी कोशिश की। पुलिस कभी-कभी कानून भूल जाती है। प्रतिबंध जब रविवार के लिए था, तो आज मुझे क्यों रोका गया? हर मायने में यह एक स्वतंत्र देश है। लेकिन ये हमें अपना गुलाम समझते हैं। हम गुलाम नहीं हैं। हम सेवक हैं, लेकिन जनता के सेवक है। मुझे समझ नहीं आता कि वर्दी में रहते हुए भी वे कानून की धज्जियां क्यों उड़ाते हैं?’’
क्या है पूरा मामला
दरअसल 13 जुलाई, 1931 की ऐतिहासिक घटना को याद करते हुए, जब डोगरा सेना की गोलीबारी में 22 लोग शहीद हुए थे, जम्मू-कश्मीर में हर वर्ष इस दिन को 'शहीद दिवस' के रूप में मनाया जाता है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला इन्हीं शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान जाना चाह रहे थे, लेकिन प्रशासन की ओर से इसकी अनुमति नहीं मिली थी। जिसके बाद यह नाटकिय घटनाक्रम देखने को मिला।
अब्दल्ला ने प्रशासन को घेरा
अब्दुल्ला ने कहा कि उन्होंने और उनकी पार्टी के नेताओं ने उन्हें पकड़ने की पुलिस की कोशिशों को नाकाम कर दिया। उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल प्रशासन उन्हें कितने दिन शहीदों को श्रद्धांजलि देने से रोक पाएगा। अगर 13 जुलाई को नहीं, तो 12 जुलाई या दिसंबर, जनवरी या फरवरी की 14 तारीख। अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘उन्होंने हमें पकड़ने की कोशिश की, हमारे झंडे को फाड़ने की कोशिश की, लेकिन सब कुछ व्यर्थ गया। हम यहां आए और ‘फातिहा’ पढ़ा। उन्हें लगता है कि शहीदों की कब्र केवल 13 जुलाई को यहां होती हैं, लेकिन वे तो सालभर यहीं हैं। हम जब चाहेंगे, तब यहां आएंगे।’’
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सुहैल साहिल भट्ट को 8 साल का घाटी में रिपोर्टिंग का तजुर्बा है। राजनीति और कश्मीर के हर हलचल पर पैनी नजर।और देखें

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