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चंद्रग्रहण के दिन मंदिरों के कपाट क्यों हो जाते हैं बंद, जानिए क्या कहता है इतिहास

उत्तराखंड में केदारनाथ जैसे पवित्र स्थलों पर यह ग्रहण पूरी तरह दिखाई दिया। सूतक काल ग्रहण से 9 घंटे पहले शुरू हो गया था, जिसके कारण मंदिरों को दोपहर से ही बंद कर दिया गया। मंदिरों के द्वार ग्रहण समाप्त होने के बाद पुनः खोले जाएंगे।
Shri Badrinath Dham

श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट सूतक काल के कारण बंद

7 सितंबर 2025 को भारत में पूर्ण चंद्र ग्रहण लगने वाला है, जिसे 'ब्लड मून' भी कहा जा रहा है। यह ग्रहण भारत सहित विश्व के कई हिस्सों में दिखाई देने वाला है। उत्तराखंड में, इस ग्रहण के कारण सभी प्रमुख मंदिरों, विशेष रूप से चार धाम (यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ) सहित अन्य मंदिरों को बंद कर दिया गया। ग्रहण के सूतक काल (Sutak Period) के दौरान मंदिरों के द्वार बंद रहे, और पूजा-अर्चना पर रोक लगा दी गई। यह परंपरा हिंदू धर्म में प्राचीन काल से चली आ रही है।

ग्रहण का समय (भारतीय समयानुसार)

  • आरंभ: 7 सितंबर 2025 को रात 9:58 बजे (IST)।
  • पूर्ण ग्रहण: रात 11:00 बजे से 12:22 बजे तक।
  • समाप्ति: 8 सितंबर 2025 को सुबह 1:26 बजे (IST)।
  • अवधि: लगभग 3 घंटे 28 मिनट।

उत्तराखंड में केदारनाथ जैसे पवित्र स्थलों पर यह ग्रहण पूरी तरह दिखाई दिया। सूतक काल ग्रहण से 9 घंटे पहले शुरू हो गया था, जिसके कारण मंदिरों को दोपहर से ही बंद कर दिया गया। मंदिरों के द्वार ग्रहण समाप्त होने के बाद पुनः खोले जाएंगे। उदाहरण के लिए, देहरादून के क्लेमेंट टाउन स्थित श्री राघुनाथ मंदिर को भी सूतक काल में बंद किया गया। चार धाम मंदिरों में विशेष रूप से सख्ती बरती गई, क्योंकि ये हिंदू तीर्थस्थल अत्यधिक पवित्र माने जाते हैं।

धार्मिक महत्वहिंदू धर्म में चंद्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण को अशुभ माना जाता है। मंदिरों को बंद करने की परंपरा निम्नलिखित कारणों पर आधारित है:

  • नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव: प्राचीन हिंदू ग्रंथों के अनुसार, ग्रहण के दौरान सूर्य या चंद्रमा असामान्य नकारात्मक ऊर्जाI उत्सर्जित करते हैं। यह ऊर्जा मंदिरों की पवित्रता को प्रदूषित कर सकती है। विशेष रूप से, मूर्तियों का आभा क्षेत्र इस ऊर्जा से प्रभावित हो सकता है, जिससे देवताओं की शक्ति कमजोर हो जाती है। इसलिए, मंदिरों के द्वार बंद कर दिए जाते हैं ताकि यह ऊर्जा मूर्तियों तक न पहुंचे। ग्रहण के बाद मंदिरों को विशेष विधि से शुद्धिकरण किया जाता है, जैसे गंगाजल से स्नान और मंत्रोच्चार।
  • राहु-केतु का प्रभाव: हिंदू पौराणिक कथाओं में ग्रहण को राहु (एक दानव) द्वारा सूर्य या चंद्रमा को निगलने का प्रतीक माना जाता है। राहु और केतु (चंद्रमा के नोड्स) ग्रहण के दौरान सक्रिय हो जाते हैं, जो अशुभ ग्रह माने जाते हैं। इस समय पूजा-अर्चना करने से नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। मंदिर बंद करने से इन दानवीय शक्तियों का प्रभाव कम होता है।
  • सूतक काल का नियम: ग्रहण से पहले सूतक काल शुरू हो जाता है (चंद्र ग्रहण के लिए 9 घंटे पहले)। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य, जैसे पूजा, विवाह, यात्रा या भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। मंदिरों में पूजा बंद रखना सूतक का हिस्सा है। गर्भवती महिलाओं और बच्चों को विशेष रूप से सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। ग्रहण के बाद ही मंदिर खोले जाते हैं और विशेष दान-पुण्य किया जाता है।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण: आधुनिक व्याख्या में, ग्रहण के दौरान पराबैंगनी किरणें और विद्युत चुम्बकीय विकिरण बढ़ जाते हैं, जो स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकते हैं। मंदिर बंद रखना भीड़ को नियंत्रित करने और संभावित स्वास्थ्य जोखिमों से बचाने का तरीका हो सकता है। हालांकि, मुख्य रूप से यह धार्मिक परंपरा है। इस परंपरा का पालन उत्तराखंड जैसे धार्मिक स्थलों पर विशेष रूप से सख्त होता है, क्योंकि यहां तीर्थयात्रियों की संख्या अधिक होती है।

इतिहास और पृष्ठभूमि

ग्रहण की अवधारणा वेदों, पुराणों (जैसे भागवत पुराण, विष्णु पुराण) और ज्योतिष शास्त्रों में वर्णित है। महाभारत और रामायण में भी ग्रहणों का जिक्र है, जहां इन्हें युद्ध या महत्वपूर्ण घटनाओं के संकेतक माना गया। राहु-केतु की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है, जहां अमृत के लिए दानवों ने धोखा दिया। प्राचीन काल (लगभग 1500 ईसा पूर्व से) में हिंदू समाज ने ग्रहणों को प्राकृतिक आपदा या दैवीय संकेत माना। मंदिर निर्माण के साथ (लगभग 5वीं शताब्दी से प्रमुख मंदिर बने), इन स्थानों को पवित्र रखने के लिए बंद करने की प्रथा शुरू हुई। मध्यकाल में (मुगल और ब्रिटिश काल) भी यह परंपरा बनी रही। आजादी के बाद भी, विशेष रूप से चार धाम जैसे स्थलों पर यह अनिवार्य है।

उत्तराखंड में परंपरा

उत्तराखंड के मंदिर प्राचीन हैं (केदारनाथ 8वीं शताब्दी का)। यहां ग्रहण के दौरान बंदी की परंपरा पांडव काल से जुड़ी मानी जाती है। 2020 और 2023 के ग्रहणों में भी यही हुआ था, लेकिन 2025 का यह ग्रहण पितृ पक्ष के साथ संयोग होने से विशेष महत्वपूर्ण था।

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    अभिषेक सिन्हा author

    पत्रकारिता में 23वर्षों का अनुभव पिछले 19 वर्षों से उत्तराखंड की छोटी से लेकर बड़ी ख़बरों को करने में अहम योगदान एवं सबसे आगे, दिल्ली एनसीआर में जैन ट...और देखें

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