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मोहब्बत की स्याही में डूबी कलम के धनी थे धर्मवीर भारती, आज भी जल रही है 'गुनाहों के देवता' की रचनाओं की मशाल

Dharmveer Bharati: धर्मवीर भारती का मानना था कि कविता का दायरा इतना व्यापक होना चाहिए कि वह मानव की चिर-आदिम प्रवृत्तियों का भी मर्म छू सके। यही कारण है कि ‘ठंडा लोहा’, ‘सात गीत वर्ष’ और ‘कनुप्रिया’ जैसे संग्रह हिंदी कविता को नई संवेदना और सौंदर्य प्रदान करते हैं।

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Dharmveer Bharati: हिंदी साहित्य के जगत में अगर किसी नाम को अलग पहचान के लिए याद किया जाता है, तो वह हैं धर्मवीर भारती, जिन्होंने हिंदी साहित्य को नई दिशा दिखाई। 25 सितंबर 1926 को इलाहाबाद में जन्मे धर्मवीर भारती ने छात्र जीवन से ही लेखन और पत्रकारिता को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था। इलाहाबाद में ही उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे अध्यापन और साहित्य-सृजन के साथ-साथ ‘परिमल’ संस्था से सक्रिय रूप से जुड़े रहे।

धर्मवीर भारती (Photo: Canva)

कॉलेज के दिनों से ही उन्होंने लेखन शुरू कर दिया था। खास बात यह रही कि कवि के रूप में पहचान मिलने से पहले ही उनका एक उपन्यास, दो कहानी-संग्रह, एक समीक्षा-ग्रंथ और अनुवाद की पुस्तक प्रकाशित हो चुकी थी। बाद में जब अज्ञेय द्वारा संपादित ‘दूसरा सप्तक’ में उनकी कविताएं शामिल हुईं, तो हिंदी साहित्य जगत ने उन्हें एक नए नजरिए से देखना शुरू किया। वे कविताएं कम लिखते थे, लेकिन जब लिखते तो अपनी गहरी संवेदना और ईमानदार दृष्टि से पाठकों को छू जाते थे।

धर्मवीर भारती का मानना था कि कविता का दायरा इतना व्यापक होना चाहिए कि वह मानव की चिर-आदिम प्रवृत्तियों का भी मर्म छू सके। यही कारण है कि ‘ठंडा लोहा’, ‘सात गीत वर्ष’ और ‘कनुप्रिया’ जैसे संग्रह हिंदी कविता को नई संवेदना और सौंदर्य प्रदान करते हैं।

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