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बांग्लादेश में लोकतंत्र का भविष्य संकट में: शेख हसीना के बाद अराजकता, सांप्रदायिक हिंसा और चुनावी अनिश्चितता

शेख हसीना की सत्ता से विदाई को लोकतंत्र की जीत समझा गया था, लेकिन जिस बदलाव की अपेक्षा थी, वह संस्थागत विफलताओं, सांप्रदायिक हिंसा और कट्टरपंथ के उभार में तब्दील हो गया है। नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस की अगुवाई में अंतरिम सरकार स्थायित्व और पारदर्शिता लाने में विफल रही है। यदि जल्द और निर्णायक सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो बांग्लादेश लोकतंत्र के पतन, सामाजिक विघटन और क्षेत्रीय अस्थिरता की ओर बढ़ सकता है।

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बांग्लादेश में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को 2024 में सत्ता से हटाए जाने के बाद जो परिवर्तन की उम्मीद थी, वह अब अराजकता, भीड़तंत्र और कट्टरपंथी ताकतों के उभार में बदलती दिख रही है। देश की बागडोर संभाल रहे नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के अधीन लोकतंत्र की बहाली की बजाय हिंसा और अस्थिरता का माहौल गहराता जा रहा है।

बांग्लादेश में लोकतंत्र का भविष्य संकट में (फोटो- AP)

लिंचिंग और कानून का पतन

जहां एक ओर हसीना का पतन राजनीतिक बदलाव का प्रतीक माना गया, वहीं दूसरी ओर मजबूत लोकतांत्रिक संस्थानों के अभाव और गुटीय राजनीति ने सत्ता का शून्य पैदा कर दिया, जिसे चरमपंथी और भीड़तंत्र ने भर दिया है। "यूरोपियन टाइम्स" की एक रिपोर्ट के अनुसार, हसीना की सत्ता से विदाई के बाद के एक वर्ष में देशभर में 637 लिंचिंग की घटनाएं दर्ज की गईं। ये घटनाएं दर्शाती हैं कि औपचारिक न्याय प्रणाली की जगह अब भीड़ द्वारा न्याय ने ले ली है। जनवरी 2025 में पुलिस द्वारा जारी एक विवादास्पद रिपोर्ट में सांप्रदायिक हमलों को 'राजनीति प्रेरित' बताकर खारिज करने की कोशिश की गई, जबकि 1,769 घटनाओं में से सिर्फ 20 को ही सांप्रदायिक माना गया।

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