Majnu ka Tila गए तो कई बार होंगे, जान लीजिए इस जगह का गुरु नानक से क्या संबंध है?

मजनूं का टीला, कैसे पड़ा नाम
मजनूं का टीला, यह नाम ही कई लोगों को अपनी ओर खींच लाता है। यहां पर दूर-दूर तक टीले का नामो निशान नहीं है। हालांकि, अपनी गर्लफ्रैंड के साथ यहां आने वाले मजनूओं की कोई कमी नहीं है। लेकिन यह बात भी तय है कि इन मजनूओं वजह से इस जगह का नाम मजनूं का टीला नहीं पड़ा है। तो फिर इस जगह का नाम मजनूं का टीला कैसे पड़ा? सिख संप्रदाय के पहले गुरु रहे गुरु नानक देव जी का इस जगह से क्या संबंध है? और यहां तक कैसे पहुंचे? यह सभी जानकारी हम आपको इस आर्टिकल में देगे। मजनूं का टीला का इतिहास जानना चाहते हैं तो इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ें, हम आपको यहां तक जाने का सबसे अच्छा जरिए भी बताएंगे।
दिल्ली ऐतिहासक जगह है और यहां पर कई राजवंशों ने राज किया। हर दौर की निशानियां यहां पर आज भी मौजूद हैं। दिल्ली का इतिहास समृद्ध है और यहां पर उन ऐतिहासिक जगहों पर घूमने का अपना ही मजा है। ऐसी ही एक ऐतिहासिक जगह मजनूं का टीला भी है। नाम भले ही मजनूं का टीला हो, लेकिन यह एक धार्मिक स्थान है और तिब्बती फूड के शौकीनों के लिए यह पसंदीदा जगह है।
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कहां है मजनूं का टीला
यह इलाका उत्तरी दिल्ली जिले में आता है। हालांकि, इस जगह का आधिकारिक नाम न्यू अरुणा नगर कॉलोनी है, लेकिन ज्यादातर लोग इसे मजनूं का टीला ही कहते हैं। ISBT कश्मीरी गेट के पास यमुना नदी के किनारे यह इलाका बसा हुआ है। मजनूं का टीला क्षेत्र में तीन प्रमुख आवासीय क्षेत्र हैं, जिनके नाम अरुणा नगर, न्यू अरुणा नगर और पुराना चंद्रावल गांव हैं। बता दें कि इस इलाके को 1900 के शुरुआती वर्षों में अंग्रेजों ने बसाया था। उस दौरान यहां पर केंद्रीय सचिवालय के निर्माण में लगे मजदूरों के ठहराया गया था। आजादी के बाद 1958-59 में बड़ी संख्या में तिब्बती शरणार्थियों को यहां पर बसाया गया।
मिनी तिब्बत भी कहते हैं लोग
फिलहाल यहां पर तिब्बती शरणार्थियों की बहुत बड़ी आबादी रहती है। यहां पर तिब्बती शरणार्थियों के घरों के साथ ही उनके धार्मिक स्थल और रेस्त्रां भी हैं। यहां पर उन्होंने कपड़ों व तिब्बती मान्यताओं से जुड़ी अन्य चीजों की दुकानें भी खोली हुई हैं। यहां पर बहुत ही पतली गलियां हैं, लेकिन यहां पर बड़ी संख्या में दिल्ली और आसपास के इलाकों से लोग तिब्बती फूड और शॉपिंग के लिए आते हैं। इस तरह से यहां कि पतली गलियां हमेशा रोशन रहती हैं। तिब्बती शरणार्थियों की बड़ी आबादी यहां रहती है, इसलिए इस इलाके को मिनी तिब्बत भी कह दिया जाता है।
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कैसे पहुंचे मजनूं का टीला
जैसा की हमने पहले ही बताया यह उत्तरी दिल्ली में ISBT के पास यमुना किनारे बसा इलाका है। मजनूं का टीला पहुंचने के लिए आपको येलो लाइन मेट्रो से दिल्ली विधानसभा स्टेशन पर उतरना होगा। यहां से मजनूं का टीला की दूरी करीब 1.8 किमी है और आपको मेट्रो स्टेशन से ही ई-रिक्शा, ऑटो रिक्शा मिल जाएंगे। ग्रुप में हैं तो बात करते हुए पैदल भी यहां पहुंच सकते हैं। इसके अलावा दिल्ली परिवहन निगम यानी DTC की बस सेवा भी मजनूं का टीला तक उपलब्ध हैं। अगर सीधी बस न मिले तो आप दिल्ली-यूनिवर्सिटी या विधानसभा मेट्रो स्टेशन से यहां पहुंच सकते हैं। अपनी गाड़ी से यहां जाना चाहें तो आप NH-1 (दिल्ली-अमृतसर राजमार्ग) या NH-24 (दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे) से मजनूं का टीला पहुंच सकते हैं। दिल्ली में जगह-जगह मजनूं का टीला तक पहुंचने के लिए बोर्ड आपको मिल जाएंगे।
गुरु नानक देव से संबंध
जैसा कि हमने शुरू में ही कहा था, मजनूं का टीला का सिखों के पहले गुरु रहे गुरु नानक से खास संबंध है। चलिए इसी बारे में जानते हैं - बात उस दौर की है, जब दिल्ली सल्तनत पर सिकंदर लोदी (1489–1517) का राज था। इसी दौरान यहां के एक टीले पर स्थानीय ईरानी सूफी फकीर अब्दुल्ला रहता था। 20 जुलाई 1505 को गुरु नानक देव जी से मिला। सूफी फकीर अब्दुल्ला को लोग मजनूं नाम से पुकारते थे। मजनूं भगवान की सेवा के रूप में लोगों को अपनी नाव से मुफ्त में ही यमुना नदी पार करवाता था। मजनूं की सेवा से खु होकर गुरु नानक देव जी जुलाई के अंत तक यहां रहे।
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किसने बनाया मजनूं का टीला गुरुद्वारा
बाद के इतिहास में दर्ज है कि सन 1783 में एक सिख सैन्य नेता बघेल सिंह धालीवाल ने यहां पर मजनूं का टीला गुरुद्वारा बनवाया। छठे सिख गुरु रहे गुरु हर गोविंद सिंह भी यहां आकर रहे। आज मजनूं का टीला गुरुद्वारा दिल्ली में सबसे पुराने सिख धार्मिक स्थलों में से एक है। यहां आसपास की संपत्ति 19वीं सदी में सिख सम्राट रणजीत सिंह ने दान में दी थी।
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साल 2006 से पत्रकारिता के क्षेत्र में हैं। शुरुआत में हिंदुस्तान, अमर उजाला और दैनिक जागरण जैसे अखबारों में फ्रीलांस करने के बाद स्थानीय अखबारों और मै...और देखें

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