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यूपी में संभल के इस गांव में नहीं होता श्राद्ध , नहीं किया जाता पित्तरों का तर्पण, क्यों चली आ रही सदियों पुरानी ये परंपरा

इस समय श्राद्ध का पखवाड़ा चल रहा है जिसमें सनातन में पित्तरों के प्रति श्राद्ध और उन्हें तर्पण करने की परंपरा है। इस बीच यूपी में संभल के एक गांव में सदियों पुरानी परंपरा के तहत ना तो श्राद्ध होता है और ना ही पित्तरों का तर्पण होता है। आखिर क्यों चली आ रही है ये सदियों पुरानी परंपरा।
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यूपी में संभल के इस गांव में नहीं होता है श्राद्ध (PHOTO- PTI)

संभल : उत्तर प्रदेश के संभल जिले के एक गाँव में 'पितृ पक्ष' के दौरान श्राद्ध कर्म न करने की लगभग सौ वर्षों से चली आ रही परंपरा का पालन आज भी किया जा रहा है। इस दौरान न तो किसी ब्राह्मण को तर्पण के लिए बुलाया जाता है और न ही गाँव में भिक्षा दी जाती है। गुन्नौर तहसील के यादव बहुल भगता नगला गाँव के ग्रामीणों के अनुसार, पितृ पक्ष के पूरे पखवाड़े में कोई भी श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता। यहाँ तक कि भिखारी भी गाँव में प्रवेश नहीं करते, क्योंकि इन दिनों कोई दान या भिक्षा नहीं दी जाती।

ग्रामीणों के अनुसार, इस परंपरा की शुरुआत लगभग एक सदी पहले हुई थी। मान्यता है कि एक ब्राह्मण महिला किसी परिजन की मृत्यु के बाद के कर्मकांड के लिए गाँव आई थी, लेकिन भारी वर्षा के कारण यहीं रुक गई। जब वह कुछ दिन बाद अपने घर लौटी, तो उसके पति ने उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगाते हुए उसे घर से निकाल दिया।

ग्रामीणों में क्यों है ये मान्यता

न्यूज एजेंसी भाषा की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण बताते हैं कि व्यथित होकर वह महिला वापस भगता नगला लौट आई और इस दुर्भाग्य के लिए अपनी यात्रा को कारण मानते हुए गाँव को श्राप देते हुए कहा भविष्य में यदि इस गाँव में श्राद्ध किया गया, तो वह दुर्भाग्य लाएगा। गाँव के लोगों ने उसके शब्दों को श्राप मानकर श्राद्ध कर्म करना पूरी तरह से बंद कर दिया। तब से यह परंपरा चली आ रही है।

गांव में रहते हैं 2500 निवासी

गाँव की प्रधान शांति देवी और उनके पति रामदास ने बताया कि गाँव में लगभग 2,500 निवासी हैं, जिनमें अधिकतर यादव समुदाय से हैं। कुछ मुस्लिम और कुछ ब्राह्मण परिवार भी हैं। रामदास ने कहा कि उस घटना के बाद हमारे बुजुर्गों ने श्राद्ध करना बंद कर दिया था। हम उनकी मान्यताओं का पालन करते हैं और आज भी यह परंपरा जारी है। यहाँ तक कि भिखारी भी इन दिनों गाँव में नहीं आते।

परंपरा तोड़ने की भी कोशिश हुई

एक अन्य ग्रामीण हेतराम सिंह (62) ने बताया कि अतीत में जब किसी ने इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश की, तो भीषण समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिससे लोगों का विश्वास और दृढ़ हो गया। ग्रामीण रामफल (69) ने बताया, "श्राद्ध पक्ष को छोड़कर, ब्राह्मण विवाह और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के लिए गाँव आते रहते हैं। लेकिन इन 15 दिनों के दौरान, यहाँ के स्थानीय ब्राह्मण भी किसी धार्मिक समारोह में भाग नहीं लेते।" (भाषा इनपुट)

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संजीव कुमार दुबे author

पत्रकारिता में मेरे सफर की शुरुआत 20 साल पहले हुई। 2002 अक्टूबर में टीवी की रुपहले दुनिया में दाखिल हुआ। शुरुआत टीवी की दुनिया के उस पहलू से हुई जहां ...और देखें

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