Bastar: The Naxal Story Review: नक्सलियों से प्रभावित आदिवासी महिलाओं की व्यथा और दर्द दिखाती है बस्तर द नक्सल स्टोरी
Bastar: The Naxal Story Review: अदा शर्मा स्टारर फिल्म बस्तर द नक्सल स्टोरी सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। इस फिल्म में छत्तीसगढ़ और वहां की महिलाओं के दर्द को दिखाया गया है। पढ़िए यह रिव्यू और देखिए फिल्म।

Bastar: The Naxal Story Review
कास्ट एंड क्रू
महिलाओं और मांओं की व्यथा
साल 2000 में मध्य प्रदेश से अलग होकर एक नया राज्य बना। नाम छत्तीसगढ़, यह प्रदेश आदिवासी बाहुल्य है। जंगल यहां बहुत हैं और उतना की खनिज पदार्थ भी यहां रहा। इसके साथ ही यहां नक्सलियों और माओवादियों का भी आतंक शुरू हो गया। इससे बस्तर और उससे सटे इलाकों के आदिवासी परेशान होते। उनका यह कहना होता कि नक्सलियों से बात करो तो पुलिस उन्हें माओवादी समझ मार देती। अगर पुलिस से बात करो नक्सली मुखबिर समझ कर मार देते। बस्तर को नक्सलियों से मुक्त कराने का बीड़ा IPS नीरजा माधवन लेती है। वह चाहती है कि बस्तर में विकास हो और वहां के बच्चे स्कूलों में पढ़ने जाएं। हालांकि उसपर कई आरोप लगे हैं कि वह फर्जी एनकाउंटर कर मासूम आदिवासियों को मार रही हैं। एक दिन एक आदिवासी टीचर एक दिन अपने स्कूल में तिरंगा लहरता है। इस दौरान स्कूल में उसके परिवार के साथ गांव के लोग मौजूद रहते हैं। स्कूल में नक्सलियों की आमद होती है और वह सबको उठा कर अपने बेस ले जाते हैं। इसके बाद नक्सलियों की जन अदालत लगती है, जिसमें उसके पति को काट दिया जाता है। दूसरी तरफ राज्य के एक नेता जो अब सामाजिक कार्यकर्ता बन गए हैं, वह पुलिस के साथ मिलकर सलवा जुडूम आंदोलन चला रहे हैं। इससे नक्सली खफा थे और वह नीरजा और नेता कर्मा को इसकी सजा देना चाहते थे। कई बार नक्सलियों और माओवादियों के निशाने में अर्द्ध सैनिक बल के बेस भी आए। एक 76 जवानों की नक्सलियों ने हत्या भी की। बस्तर द नक्सल स्टोरी बस्तर की इन्हीं कहानियों को दिखाती है।
अदा और इंदिरा की अदाकारी की जुगलबंदी
बस्तर द नक्सल स्टोरी में IPS नीरजा माधवन के किरदार को अदा शर्मा ने निभाया है। हार्ड हिटिंग सब्जेक्ट वाली यह अदा की दूसरी फिल्म है। इससे पहले वह द केरल स्टोरी में नजर आईं थी। नीरजा माधवन के किरदार उनका तेज-तर्रार और गुस्से वाला रूप अच्छा है। साथियों की मौत पर जितना गुस्सा जायज है उतना इमोशन भी। इस जगह पर अदा ने अपने काम को अच्छे से अंजाम दिया है। प्रेग्नेंट होने के बाद नक्सलियों से लड़ना और अपने बच्चे को खोने वाले सीन में भी वह थोड़ी मजबूत दिखी हैं। हालांकि, फिल्म में जिस हिसाब से विचलित कर देने वाली सिचुएशन आती हैं, कई बार अदा का अंदाज वहां हल्का पड़ जाता है। वहीं, आदिवासी महिला रत्ना के किरदार को इंदिरा तिवारी ने बखूबी निभाया है। फिल्म में कई बार वह सभी कैरेक्टर्स पर हावी होती हैं। पति की हत्या और बंदूक ताने खड़े लड़के वाले दृश्यों में वह कमाल हैं। इस फिल्म में इंदिरा का चुनाव सटीक है। वंदे वीरम गाने में उनका एक लुक आपको थोड़ा झटका देता है। इसके अलावा फिल्म में रायमा सेन और शिल्पा राव ने अपने किरदार को अच्छी तरह से समझ कर निभाया है। यशपाल शर्मा का काम भी ठीक है। विजय कृष्ण और पुर्णेंदु भट्टाचार्य ने भी अपने-अपने रोल के साथ न्याय किया है।
कमजोर डायरेक्शन को राइटिंग का मिला साथ
फिल्म की कहानी को विपुल शाह, सुदीप्तो सेन और अमरनाथ झा ने मिलकर लिखा है। बस्तर में नक्सिलयों की दुर्दांत नरसंहार से प्रभावित हुए आदिवासी की व्यथा को उन्होंने बखूबी दिखाया है। फिल्म में विदेशी फंडिंग और तथाकथित बुद्धिजीवी जो खुद अपना एक नैरेटिव चला रहे हैं, उनको भी उन्होंने दिखाया है। फिल्म में उन्होंने किसी भी सरकार को सही और गलत नहीं बताया है। हालांकि फिल्म में थोड़ी और कसावट की जरूरत थी। डायरेक्शन की बात करें तो सुदीप्तो इस बार बस्तर में थोड़ा फीके पड़े हैं। केरल स्टोरी को जिस हिसाब से उन्होंने दिखाया था, इस बार वह अपना करिश्मा दिखाने में पूरी तरह सफल नहीं हुए हैं। डायरेक्शन के लिहाज से इसमें थोड़ी गुंजाइश और है।
फिल्म प्रोपगैंडा दिखाती है या फिर सच?
बस्तर द नक्सल स्टोरी 124 मिनट की फिल्म है। इस फिल्म को सेंसर बोर्ड की तरफ से A यानी एडल्ट सर्टिफिकेट दिया गया है। फिल्म में ऐसे कई दृश्य हैं जिसे देख आप विचलित हो सकते हैं। खून-खराबा ना देख पाने वाले दर्शक इसे थोड़ा सावधानीपूर्वक देखें। फिल्म में बस्तर की महिलाओं की व्यथा है। अब फिल्म प्रोपगैंडा है या फिर सच्चाई, इसे आप खुद सिनेमाघर में देखने के बाद तय करें। साथ ही अपनी खुद की राय भी बनाएं।
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आर्टिकल की समाप्ति
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