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'वोटर अधिकार यात्रा' से कांग्रेस-RJD को क्या हासिल हुआ? NDA की कितनी बढ़ी चुनौती, 5 प्वाइंट्स में समझें

बिहार में कांग्रेस की राजनीतिक उपस्थिति और उसके वोट बैंक की अगर बात करें तो 1990 के बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी लगातार कमजोर होती आई है। 1990 में कांग्रेस के हाथ से सत्ता जाने के बाद फिर वह अपने बलबूते सरकार में वापसी नहीं कर पाई। लालू प्रसाद यादव की अगुवाई में जनता दल ने कांग्रेस को हराया।

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Voter Adhikar Yatra : बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस सांसद एवं लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की अगुवाई में महागठबंधन की 'वोटर अधिकार यात्रा' एक सितंबर को संपन्न हो गई। 16 दिनों की यह यात्रा बिहार के 38 जिलों में से 25 से होकर गुजरी और इसने करीब 1300 किलोमीटर का सफर तय किया। इस यात्रा का समापन एक सितंबर को पटना में हुआ। समापन मौके पर रैली को संबोधित करते हुए राहुल ने नया नारा दिया। यह नारा है 'वोट चोर, गद्दी छोड़'। कांग्रेस नेता ने कहा कि 'यह नारा चल गया है'। वहीं, रैली में मौजूद राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता एवं बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कहा कि 'लोग अब पूछ रहे हैं कि इस यात्रा से हमारे पक्ष में जो एक माहौल बना है उसे हम आगे कैसे जारी रखेंगे? तो सवाल करने वाले लोगों को इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि हम लोग इस पर काम कर रहे हैं।'

एक सितंबर को समाप्त हुई कांग्रेस की वोटर अधिकार यात्रा। तस्वीर-@INCBihar

राहुल गांधी ने EC पर वोट चोरी का आरोप लगाया

एक्सपर्ट भी मान रहे हैं कि इस 'वोटर अधिकार यात्रा' से कांग्रेस और राजद के पक्ष में एक माहौल तो बना है लेकिन अपने पक्ष में बने इस माहौल को चुनाव तक ले जाना और लोगों के समर्थन को वोट में तब्दील करा पाना महागठबंधन के नेताओं के लिए एक बड़ी चुनौती है। 17 अगस्त से बिहार के सासाराम से शुरू होने वाली इस यात्रा के साथ तेजस्वी और महागठबंधन के अन्य नेता भी लगे रहे। जगह-जगह रोड शो हुए और जनसभाओं में भाजपा और चुनाव आयोग (EC) पर वोट चोरी करने का गंभीर आरोप लगाया गया। राहुल ने बार-बार आरोप लगाया कि 'महाराष्ट्र, हरियाणा के बाद अब बिहार में वोटों की चोरी की जा रही है और यह चोरी कैसे हुई है, इसे उन्होंने उजागर किया है लेकिन आगे वह इस वोट चोरी को होने नहीं देंगे।' चुनाव से ठीक पहले हुई इस यात्रा को कांग्रेस के लिए जनसमर्थन जुटाने और वोटरों में अपनी पकड़ मजबूत करने की राहुल की एक कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

1990 के बाद कमजोर होती चली गई कांग्रेस

बिहार में कांग्रेस की राजनीतिक उपस्थिति और उसके वोट बैंक की अगर बात करें तो 1990 के बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी लगातार कमजोर होती आई है। 1990 में कांग्रेस के हाथ से सत्ता जाने के बाद फिर वह अपने बलबूते सरकार में वापसी नहीं कर पाई। लालू प्रसाद यादव की अगुवाई में जनता दल ने कांग्रेस को हराया। इसके बाद के विधानसभा चुनावों में पार्टी सरकते-सरकते हाशिए पर चली गई। 2000 के विधानसभा चुनाव में उसे मजह 23 सीटों पर जीत मिली। राज्य में अपने जनाधार को बचाए और खुद को प्रांसगिक बनाए रखने के लिए वह राजद के साथ गठबंधन में यानी छोटे भाई की भूमिका में आ गई। बिहार में करीब दो दशक तक कांग्रेस ने अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किया। वह गठबंधन धर्म और राजद के 'छोटे भाई' की भूमिका निभाती रही।

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