इजरायल के खिलाफ नाटो जैसी सेना क्यों खड़ी करना चाहते हैं मुस्लिम देश? 72 घंटे में 6 देशों पर हमले से डरे खाड़ी के देश

इजरायल को मिलकर जवाब देना चाहते हैं मुस्लिम देश। तस्वीर-AP
Muslim Countries Unity against Israel: कतर पर इजरायली हवाई हमले के बाद मध्य पूर्व के मुस्लिम देशों में खलबली मची हुई है। सबकी यही चिंता है कि इजरायल का अगला निशाना कौन देश बन सकता है। दुनिया में करीब 57 मुस्लिम देश हैं और हर मुस्लिम देश इस समय कतर के पक्ष में खुलकर खड़ा है। यहां तक कि पाकिस्तान भी कतर को इजरायल पर हमले के लिए उकसा रहा है। इजरायल के इन हमलों ने खाड़ी देशों में ऐसी एकजुटता को जन्म दिया है जो यहूदी देश के लिए अच्छी नहीं मानी जा रही है। मुस्लिम देश इजरायल के खिलाफ लामबंद हो गए हैं और उसे जवाब देने के लिए उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) की तरह अपना एक सैन्य गठबंधन बनाने पर जोर दे रहे हैं।
72 घंटे के भीतर 6 देशों पर हमले
हाल के दिनों में इजरायल ने आतंकवादियों के ठिकानों पर हमले तेज किए हैं। गाजा में पहले से ही हमले कर रहे यहूदी देश ने आठ सितंबर से 10 सितंबर यानी 72 घंटे भीतर छह इस्लामी देशों पर हमले कर दिए। इजरायल के हाल के हमलों को देखें तो यह हमले गाजा, सीरिया लेबनान, यमन, ट्यूनीशिया और कतर पर हुए हैं। रिपोर्टों के मुताबिक इन हमलों में 200 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और 1000 से ज्यादा घायल हुए। अपने इन हमलों पर इजरायल ने कहा कि उसने इन देशों में आतंकवादी ठिकानों और आतंकियों को निशाना बनाया।
1-यमन : हूतियों पर हमले
बीते 10 सितंबर को इजरायल ने यमन की राजधानी सना में हूती विद्रोहियों के पब्लिक इन्फॉर्मेशन डिपार्टमेंट, ईंधन भंडारण केंद्र को निशाना बनाकर हमला किया। इन हमलों में 20 से ज्यादा हूती विद्रोही मारे गए। इजरायल ने कहा कि लाल सागर में हूती विद्रोहियों ने उसके जहाजों पर ड्रोन एवं मिसाइल से हमले किए थे।
2-कतर : हमास नेताओं पर हवाई हमला
नौ सिंतबर की शाम इजरायल ने कतर की राजधानी दोहा पर हवाई हमले किए। रिपोर्टों के अनुसार एफ-15 और एफ-35 फाइटर प्लेन ने दोहा पर 10 से ज्यादा मिसाइलें दागीं। इजरायल ने कहा कि खलील अल हाया सहित हमास के शीर्ष नेता कतर में छिपे हुए हैं और गाजा सीजफायर की वार्ता कर रहे हैं।
3-लेबनान: हिज्बुल्ला के सदस्यों पर हमला
बीते आठ सितंबर को इजरायल ने हिज्बुल्ला के एक नेता पर निशाना बनाते हुए लेबनान के बार्जा पर ड्रोन से हमले किए। लेबनान पर इजरायल 600 से ज्यादा हमले कर चुका है। इजरायल का कहना है कि 7 अक्टूबर 2023 के बाद हिज्बुल्ला उत्तरी इजरायल में लगातार रॉकेट दागता आ रहा है। ये हमले दक्षिणी लेबनान से खतरों को कम करने के लिए थे।
4- सीरिया: हवाई हमलों में 12 की मौत
गत आठ सितंबर को इजरायल ने सीरिया में हवाई हमले किए। इन हमलों में ईरान एवं सीरियाई सेना के कर्मियों सहित 12 लोगों की मौत हुई। इन हमलों पर इजरायल ने कहा कि सीरिया, ईरान के आईआरजीसी एयर फोर्स को हथियारों की आपूर्ति और हिज्बुल्ला एवं हमास को मजबूत कर रहा था।
5. ट्यूनीशिया : हमले में दो जहाज नष्ट
बीते आठ सितंबर की रात इजरायल ने अपने एक ड्रोन हमले ट्यूनीशिया के तट पर एक पारिवारिक बोट को नष्ट किया। इस बोट में छह लोग सवार थे। इस बोट पर पुर्तगाल का झंडा लगा था। ट्यूनीशिया में नौ सितंबर को भी हमला हुआ। इजरायल का कहना है कि ये बोट्स खाद्य पदार्थ, दवा और आपूर्ति लेकर गाजा जा रहे थे। इन बोट्स में हमास को मदद करने के लिए हथियार और लॉजिस्टिक हो सकते थे।
6- गाजा : मिसाइल, ड्रोन से हमला
आठ सितंबर को ही इजरायल ने गाजा पर सटीकता से प्रहार करने वालीं 12 से ज्यादा मिसाइलें दागीं। ड्रोन से भी हमले हुए। इन हमलों में 32 से ज्यादा लोग मारे गए। इजरायल ने कहा कि यह 'ऑपरेशन ऑयरन स्वार्ड' का हिस्सा था। इन हमलों का उद्देश्य हमास को खत्म करना था।
इन हमलों के बाद खाड़ी देशों को आशंका जता है कि इजरायल अब अन्य मुस्लिम देशों पर हमला कर सकता है। रिपोर्टों में ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर के पूर्व चीफ मोहसिन रेजाई के हवाले से कहा गया है कि इजरायल आगे सऊदी अरब, तुर्किये और इराक पर हमला कर सकता है।
रविवार को दोहा में मिले मुस्लिम नेता
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, रविवार को कतर की राजधानी दोहा में हुए एक आपातकालीन अरब-इस्लामी शिखर सम्मेलन में अरब देशों के संयुक्त सैन्य गठबंधन का प्रस्ताव भी पेश किया गया। राजनयिक सूत्रों और अरब मीडिया ने बताया कि शिखर सम्मेलन सोमवार को एक संयुक्त सैन्य गठबंधन के निर्माण का समर्थन करने के लिए तैयार था। इस 'अरब नाटो' गठबंधन के लिए सबसे ज्यादा दबाव मिस्र डाल रहा है। मिस्र अरब में सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है। हालांकि, मिस्र के अमेरिका से भी बहुत अच्छे संबंध हैं। मिस्र इजरायल के साथ भी सीमा साझा करता है। ऐसे में अगर अरब नाटो का निर्माण होता है तो इसका नेतृत्व मिस्र के हाथों में ही होगा।
पाकिस्तान भी चाहता है शामिल होना
पाकिस्तान दुनिया का एकमात्र परमाणु शक्ति संपन्न मुस्लिम राष्ट्र है। वह भी इस गठबंधन में अपने परमाणु बम के साथ शामिल होने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान का तर्क है कि उसे इजरायल के कथित विस्तारवादी मंसूबों को रोकने के लिए इस गठबंधन में शामिल किया जाना चाहिए। उसने इजरायल के खिलाफ एक समन्वित तरीके से प्रभावी निवारक और आक्रामक उपाय अपनाने के लिए एक संयुक्त कार्य बल बनाने का आह्वान किया है। पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में कहा-इजरायल को युद्ध अपराधों और मानवता के विरुद्ध अपराधों के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। उसे इस्लामी देशों पर हमला करने और लोगों की बेखौफ हत्या करने की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए।
इजरायल ने तनाव बढ़ाने का विकल्प चुना-कतर
रविवार को अरब-इस्लामी शिखर सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर कतर के प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल-थानी ने कहा-जो हुआ वह केवल एक लक्षित हमला नहीं था, बल्कि मध्यस्थता के सिद्धांत पर और युद्ध व विनाश के विकल्प के रूप में कूटनीति द्वारा प्रस्तुत हर चीज पर हमला था। थानी ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय यानी पश्चिम से इजरायल को जवाबदेह ठहराने में उनकी असफलता के लिए निंदा की। उन्होंने कहा कि युद्धविराम और बंधकों की रिहाई पर कतर की बातचीत का स्वागत करने के बजाय, इजरायल ने तनाव बढ़ाने का विकल्प चुना है। थानी ने मुस्लिम देशों से आगे की हिंसा को रोकने के लिए 'वास्तविक और ठोस कदम' उठाने का आग्रह किया।
पाकिस्तान को मिल जाएगा 'सुरक्षा कवच'
नाटो की तर्ज पर अपनी एक संयुक्त सेना बनाने वाले मुस्लिम देशों के इस प्रयास में यदि पाकिस्तान शामिल होता है तो यह भारत के लिए चिंता की बात होगी। दरअसल, पश्चिम के नाटो की सबसे बड़ी ताकत उसका अनुच्छेद 5 माना जाता है, जिसके तहत किसी भी नाटो सदस्य पर हमला पूरे नाटो पर हमला माना जाता है। इसके तहत सभी सदस्य देश उस हमलावर देश के खिलाफ जंग लड़ने को मजबूर होते हैं। ऐसे में अगर अरब नाटो का निर्माण होता है और पाकिस्तान इसमें शामिल हो जाता है तो उसे खाड़ी देशों का एक सुरक्षा कवच मिल जाएगा। भारत के खाड़ी देशों से मजबूत व्यापारिक संबंध हैं। वहीं, पाकिस्तान के साथ भारत की पुरानी दुश्मनी है। वह हर अंतरराष्ट्रीय मंच का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करता आया है। जाहिर है कि इस सैन्य गठबंधन में शामिल होने के बाद कुचक्र और साजिश रचने से बाज नहीं आएगा। दूसरा, इस तरह का सैन्य गठबंधन बनने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जियोपॉलिटिक्स में एक बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। मध्य पूर्व में अपने हितों को देखते हुए अमेरिका भी इस तरह के सैन्य गठबंधन के पक्ष में नहीं होगा। क्योंकि खाड़ी के ज्यादातर देश हथियारों के लिए उसी पर निर्भर हैं।
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आलोक कुमार राव न्यूज डेस्क में कार्यरत हैं। यूपी के कुशीनगर से आने वाले आलोक का पत्रकारिता में करीब 19 साल का अनुभव है। समाचार पत्र, न्यूज एजेंसी, टेल...और देखें

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