कौन हैं भारत की पहली महिला वकील, इस कॉलेज से ली वकालत की डिग्री

जिस समय महिलाओं को घर से बाहर निकलने तक की इजाजत नही थी। उसी दौर में एक महिला ऐसी भी हुई जिन्होने सारी जंजिरो को तोड़कर महिलाओं को वकालत करने का अधिकार दिलाया। उस समय भारत और ब्रिटेन में कानून की प्रैक्टिस करने वाली वो पहली भारतीय महिला वकील बनीं। कानून की परीक्षा में सबसे ज्यादा अंक मिले लेकिन महिला होने के कारण स्कॉलरशिप नहीं मिल सका।

महिलाओं के लिए संघर्ष
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महिलाओं के लिए संघर्ष

आज भारत के हर क्षेत्र में महिलाओं का परचम लहरा रहा है। रक्षा, कला, न्यायपालिका, साहित्य, सामाजिक और राजनीति से जुड़े हर क्षेत्र में महिलाओं को देखना आज के दौर में कोई बड़ी बात नहीं हैं, लेकिन एक वक्त था, जब किसी महिला को काला कोर्ट पहने हुए न्याय के मंदिर में खड़े देखना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था।

कॉर्नेलिया सोराबजी
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कॉर्नेलिया सोराबजी

उस समय जब महिलाओं को पढ़ने का अधिकार भी नहीं था, कॉर्नेलिया सोराबजी नाम की एक महिला ने महिलाओं के विकास को लेकर अनोखा कारनामा कर दिखाया। कॉर्नेलिया सोराबजी का जन्म 15 नवंबर 1866 को नासिक में एक पारसी परिवार में हुआ था।

कॉर्नेलिया सोराबजी के माता पिता
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कॉर्नेलिया सोराबजी के माता पिता

कॉर्नेलिया सोराबजी के पिता रेवरेंड सोराबजी कारसेजी (एक पारसी) और माता फ्रांसिना फोर्ड (एक पारसी परिवार से थी। कॉर्नेलिया सोराबजी परिवार की दस संतानों में से एक थीं।

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन
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ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन

वो बॉम्बे विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट की ड्रिग्री हासिल करने वाली पहली महिला थीं। कॉर्नेलिया सोराबजी कानून की पढ़ाई के लिए ब्रिटेन गई। वहां ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई करने वाली पहली महिला भी बनीं। इसके साथ ही वे भारत और ब्रिटेन में लीगल प्रैक्टिस करने वाली पहली भारतीय महिला बनी।

स्कॉलरशिप नहीं मिली
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स्कॉलरशिप नहीं मिली

आजादी से पहले भारत में किसी महिला का शिक्षा प्राप्त करना काफी चुनौतीपूर्ण होता था, लेकिन बावजूद इसके कॉर्नेलिया सभी बंधनों को तोड़ती हुई अपनी लक्ष्य की ओर चल पड़ी। आलम ये था कि परीक्षा में सबसे ज्यादा अंक मिलने के बावजूद भी एक महिला होने के कारण उन्हें स्कॉलरशिप नहीं मिली।

महिलाओं के लिए किया ये काम
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महिलाओं के लिए किया ये काम

कोर्नेलिया ने भारत की महिलाओं को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ और 600 से ज्यादा महिलाओं और नाबालिग लड़कियों को कानूनी मदद मुहैया करवाई। कड़ी लड़ाई के बाद आखिरकार 1922 में लंदन ने महिलाओं को कानून का अभ्यास करने की अनुमति दी। वहीं 1924 में ब भारत में महिलाओं के लिए कानूनी पेशा खोला गया। उन्होंने कलकत्ता में वकालत शुरू की और 1929 में सेवानिवृत्त हो गईं। फिर वो इंग्लैंड चली गईं और 1954 में उनकी मृत्यु हो गई।

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