Holi ke Dohe: बरसाने बरसन लगी नौ मन केसर धार, ब्रज मंडल में आ गया होली का त्यौहार, पढ़ें रंगों के पर्व होली के शानदार दोहे यहां

Holi ke Dohe in Hindi
Holi ke Dohe (होली के दोहे): होली, सनातन हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली दुनिया की लोकप्रिय त्योहारों में से एक है, जिसकी मान्यताएं सदियों से चली आ रही हैं। इस पर्व की धार्मिक मान्यता भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद और उसके अहंकारी पिता हिरण्यकशिपु की कथा से जुड़ी हुई है। होली केवल धार्मिक महत्व तक सीमित नहीं है, बल्कि ये सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी विशेष महत्व रखती है। होली का रंगोत्सव सभी जन अपने परिवार और दोस्तों के साथ मानना पसंद करते हैं और इस अवसर पर गाए जाने वाले दोहे, लोकगीत और भजन आकर्षण का केंद्र होते हैं। हिंदी पद्य साहित्य के प्रख्यात कवि जैसे कि बिहारी, संत कबीर, सूरदास और रहीम ने होली पर कई प्रसिद्ध दोहे लिखे हैं, जो प्रेम, भक्ति और सामाजिक समरसता का संदेश देते हैं। ऐसे में आप यहां पर होली के कुछ शानदार और खूबसूरत दोहे पढ़ सकते हैं।
Holi ke Dohe (होली के दोहे)
-लाल हरी नीली हुई, नखरैली गुलनार।
रंग-रंगीली कर गया, होली का त्यौहार।।
-आंखों में महुआ भरा, सांसों में मकरंद।
साजन दोहे सा लगे, गोरी लगती छंद।।
-कस के डस के जीत ली, रंग रसिया ने रार।
होली ही हिम्मत हुई, होली ही हथियार।।
-हो ली, हो ली, हो ही ली, होनी थी जो बात।
हौले से हंसली हंसी, कल फागुन की रात।।
-होली पे घर आ गया, साजणियो भरतार।
कंचन काया की कली, किलक हुई कचनार।।
-केसरिया बालम लगा, हंस गोरी के अंग।
गोरी तो केसर हुई, सांवरिया बेरंग।।
-देह गुलाबी कर गया, फागुन का उपहार।
साँवरिया बेशर्म है, भली करे करतार।।
-बरसाने बरसन लगी, नौ मन केसर धार।
ब्रज मंडल में आ गया, होली का त्यौहार।।
-बिरहन को याद आ रहा, साजन का भुजपाश।
अगन लगाये देह में, बन में खिला पलाश।।
-सांवरिया रंगरेज ने, की रं गरेजी खूब।
फागुन की रैना हुई, रंग में डूबम डूब।।
-सतरंगी सी देह पर, चूनर है पचरंग।
तन में बजती बांसुरी, मन में बजे मृदंग।।
-जवाकुसुम के फूल से, डोरे पड़ गये नैन।
सुर्खी है बतला रही, मनवा है बेचैन।।
-बरजोरी कर लिख गया, प्रीत रंग से छंद।
ऊपर से रूठी दिखे, अंदर है आनंद।।
-होली में अबके हुआ, बड़ा अजूबा काम।
सांवरिया गोरा हुआ, गोरी हो गई श्याम।।
-कंचन घट केशर घुली, चंदन डाली गंध।
आ जाये जो साँवरा, हो जाये आनंद।।
-घर से निकली सांवरी, देख देख चहुं ओर।
चुपके रंग लगा गया, इक छैला बरजोर ।।
फगुआ गीत की मान्यता (Phagua Geet ki Manyata)
फगुआ गीत फागुन माह में, विशेषकर होली के अवसर पर गाए जाने वाले पारंपरिक लोकगीत हैं, जो प्रेम, हंसी-मजाक और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं। इन दोहों को गीतों में गाया जाता है जिससे होली का पर्व और भी अधिक रंगीन बन जाता है। मान्यताओं के अनुसार फागुन के महीने में जब प्रकृति अपना श्रृंगार करती है, तो फगुआ गीत उसी प्रकृति के वर्णन और आनंद के प्रतीक में गाया जाता है।
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धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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