अध्यात्म

Jitiya Vrat Katha: जितिया व्रत कथा, जीमूतवाहन की इस पौराणिक कहानी के बिना अधूरा रह जाता है जिउतिया का व्रत

Jitiya Vrat Katha In Hindi (जितिया व्रत कथा): कल जितिया व्रत है। इस व्रत को माताएं अपने बच्चों के दिर्घायु होने और निरोग होने के लिए करती हैं। इस व्रत में भगवान जीमूतवाहन की पूजा होती और साथ ही उनकी व्रत कथा भी पढ़ी जाती है। यहां से आप जीमूतवाहन की कथा देख सकते हैं।

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Jitiya Vrat Katha In Hindi (जितिया व्रत कथा): एक बार नैमिषारण्य के निवासी ऋषियों ने संसार के कल्याणार्थ सूतजी से पूछा- हे सूत! कराल कलिकाल में लोगों के बालक किस तरह दीर्घायु होंगे सो कहिए? सूतजी बोले- जब द्वापर का अन्त और कलियुग का आरंभ था, उसी समय बहुत-सी शोकाकुल स्त्रियों ने आपस में सलाह की थी। कि क्या इस कलियुग में माता के जीवित रहते पुत्र मर जाएंगे? जब वे आपस में कुछ निर्णय नहीं कर सकी तब गौतमजी के पास पूछने के लिए गयीं। जब उनके पास पहुंचीं, तो उस समय गौतमजी आनन्द के साथ बैठे थे। उनके सामने जाकर उन्होंने मस्तक झुकाकर प्रणाम किया। तदनन्तर स्त्रियों ने पूछा 'हे प्रभो! इस कलियुग में लोगों के पुत्र किस तरह जीवित रहेंगे? इसके लिए कोई व्रत या तप हो तो कृपा करके बताइए। इस तरह उनकी बात सुनकर गौतमजी बोले-'आपस मैं वही बात कहूँगा, जो मैंने पहले से सुन रखा है'। गौतमजी ने कहा-जब महाभारत युद्ध का अन्त हो गया और द्रोणपुत्र अश्वत्थामा के द्वारा अपने बेटों को मरा देखकर सब पाण्डव बड़े दुःखी हुए तो पुत्र के शोक से व्याकुल होकर द्रौपदी अपनी सखियों के साथ ब्राह्मण-श्रेष्ठ धौम्य के पास गयीं और उसने धौम्य से कहा-'हे विप्रेन्द्र। कौन-सा उपाय करने से बच्चे दीर्घायु हो सकते हैं, कृपा करके ठीक-ठीक कहिये।

जितिया व्रत कथा (AI Generated)

धौम्य बोले-सत्ययुग में सत्यवचन बोलनेवाला, सत्याचरण करनेवाला, समदर्शी जीमूतवाहन नामक एक राजा था। एक बार वह अपनी स्त्री के साथ अपनी ससुराल गया और वहीं रहने लगा। एक दिन आधी रात के समय पुत्र के शोक से व्याकुल कोई स्त्री रोने लगी, क्योंकि वह अपने बेटे के दर्शन से निराश हो चुकी थी उसका पुत्र मर चुका था। वह रोती हुई कहती थी-'हाय, मुझ बूढ़ी माता के सामने मेरा बेटा मरा जा रहा है।' उसका रुदन सुनकर राजा जीमूतवाहन का तो मानों हृदय विदीर्ण हो गया।

वह तत्काल उस स्त्री के पास गया और उससे पूछा 'तुम्हारा बेटा कैसे मरा है?' बूढ़ी माता ने कहा-'गरुड़ प्रतिदिन आकर गाँव के लड़कों को खा जाता है'। इस पर दयालु राजा ने कहा-'माता! अब तुम रोओ मत। आनन्द से बैठो मैं तुम्हारे बच्चे को बचाने का यत्न करता हूँ। ऐसा कहकर राजा उस स्थान पर गया, जहाँ गरुड़ आकर प्रतिदिन मांस खाया करता था। उसी समय गरुड़ भी उस पर टूट पड़ा और मांस खाने लगा। जब अतिशय तेजस्वी गरुड़ ने राजा का बायाँ अंग खा लिया तो झटपट राजा ने अपना दाहिना अंग फेरकर गरुड़ के सामने कर दिया। यह देखकर गरुड़जी ने कहा-'तुम कोई देवता हो? कौन हो? तुम मनुष्य तो नहीं जान पड़ते। अच्छा, अपना जन्म और कुल बताओ। पीड़ा से व्याकुल मनवाले राजा ने कहा-'हे पक्षिराज। इस तरह के प्रश्न करना व्यर्थ है, तुम अपनी इच्छाभर मेरा मांस खाओ'। यह सुनकर गरुड़ रुक गए और बड़े आदर से राजा के जन्म और कुल की बात पूछने लगे।

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