आयो रे म्हारो ढोलना... शुभा मुद्गल के मन में बसे हैं संगीत और इलाहाबाद

शुभा मुद्गल
आज सिटी की हस्ती में हम जिस हस्ती की बात कर रहे हैं, वह किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। उन पर लता मंगेश्कर वह गाना एकदम फिट बैठता है, 'मेरी आवाज ही पहचान है'। जी हां शुभा मुद्गल को उनकी आवाज से हर कोई पहचानता है। उनकी आवाज उनका पता है। लेकिन क्या आपको पता है कि शुभा मुद्गल किस सिटी की हस्ती हैं। मतलब वह कहां पैदा हुईं? उनका पालन-पोषण और संगीत की शिक्षा कहां पर हुई? नहीं भी पता तो कोई बात नहीं, आज City Influencer में हम शुभा मुद्गल के बारे में करीब से जानेंगे -
प्रयागराज में जन्मीं शुभा मुद्गलशुभा मुद्गल का जन्म 1959 में आज के प्रयागराज (तब इलाहाबाद) के एक शिक्षित परिवार में हुआ था। इनके पिता स्कंद गुप्ता और माता जया गुप्ता दोनों इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे। शुभा मुद्गल के माता-पिता दोनों की ही हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और कथक में बड़ी रुचि थी। शास्त्रीय संगीत और कला के प्रति माता-पिता के प्रेम के कारण ही शुभा मुद्गल भी संगीत के प्रति आकर्षित हुईं। बता दें उनके दादाजी पीसी गुप्ता भी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रह चुके हैं।
डांस से म्यूजिक में शिफ्ट हुईं शुभाशुभा ने इलाहाबाद में ही रहकर अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी की है। इसके बाद वह सेंट मैरी कॉन्वेंट इंटर कॉलेज गईं। कला प्रेमी माता-पिता ने शुभा और उनकी बहन को बचपन में ही कथक सीखने के लिए डांस क्लासेज में भेजा। डांस के प्रति उनकी रुचि अधिक थी नहीं। एक बार तो उनकी एक डांस एग्जाम्नर ने उनसे पूछा कि 'आप किस घराने का कथक करती हैं? 'इस पर उन्होंने उत्तर दिया, 'हम अपने घराने का कथक नाचते हैं।' बाद में उन्होंने अपने लिए हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को चुना। इलाहाबाद में उनके पहले पारंपरिक गुरु रामाश्रय झा थे।
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गुणी गुरु की शिष्य शुभाइंटर कॉलेज तक शिक्षा पूरी करने के बाद वह नई दिल्ली आ गईं और फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन के लिए एडमिशन ले लिया। इस दौरान उन्होंने विनय चंद्र मुद्गल्या के साथ अपनी संगीत की ट्रेनिंग जारी रखी। बता दें कि विनय चंद्र मुद्गलया ही गंधर्व महाविद्यालय के संस्थापक थे, यह एक फाइन आर्ट स्कूल था, जो कनॉट प्लेस में मुद्गल्या के घर से चलता था। बेहतरीन शास्त्रीय संगीतज्ञ के साथ ही मुद्गल्या एक बड़े गीतकार भी थे। उन्होंने ही 'हिंद देश के निवासी' गाना लिखा था, जिसे एनिमेशन फिल्म एक अनेक और एकता में इस्तेमाल किया गया। दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के बाद शुभा ने दिल्ली में वसंत ठकर के साथ ट्रेनिंग जारी रखी।
परफॉर्म करना शुरू कियाशुभा मुद्गल ने 1980 के दशक में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में परफॉर्मेंस शुरू की। जल्द ही उन्हें पहचान मिलने लगी। 1990 के दशक में उन्होंने संगीत की अन्य किस्मों जैसे पॉप और फ्यूजन पर प्रयोग शुरू कर दिया। शुभा मुद्गल कहती हैं, मुझे संगीत में विश्वास है। ख़याल और ठुमरी मेरे पसंदीदा फॉर्म हैं, लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीं है कि मैं संगीत के अन्य रूपों के साथ प्रयोग न करूं। अपनी संगीत संबंधी इच्छाओं का दमन क्यों करूं? मैं अपने अंदर के कलाकार को पूरी तरह से बाहर आने देना चाहती हूं। अगर आप संगीतकार हैं तो आप यह कैसे कह सकते हैं कि यह भक्ति कविता से है, इसलिए मैं इसे नहीं गाउंगी। शुभा ने न सिर्फ कई गीत रिकॉर्ड किए, बल्कि वह कन्सर्ट भी करती रही हैं।
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शुभा मुद्गल के कुछ मशहूर गीत- अब के सावन ऐसे बरसे, बह जाए रंग मेरी चुनर से...
- अर ररा आयो रे म्हारो ढोलना...
- पिया तोरा कैसा अभिमान
दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के कुछ ही समय बाद 1982 में शुभा ने मुकुल मुद्गल से शादी की। मुकुल मुद्गगल, शुभा के गुरु विनय चंद्र मुद्गल्या के पुत्र हैं। मुकुल एक अच्छे संगीतकार थे, लेकिन उन्होंने इसे अपना प्रोफेशन नहीं बनाया और वह लॉयर बन गए। वह बाद में दिल्ली हाईकोर्ट के जज बने और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे। हालांकि, यह शादी ज्यादा समय तक नहीं टिकी। इन दोनों का एक बेटा है, जिसका नाम धवल मुद्गल है। शुभा ने बाद में तबला वादक अनीश प्रधान से शादी कर ली।
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शुभा मुद्गल को 43वें नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स में अमृत बीज के लिए बेस्ट नॉन-फीचर फिल्म म्यूजिक डायरेक्शन (1995) से नवाजा गया। साल 2000 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी मिले हैं। शुभा मुद्गल सच में इलाहाबाद की शान हैं और संगीत के प्रति उनका प्रेम ही उनकी पहचान है।
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साल 2006 से पत्रकारिता के क्षेत्र में हैं। शुरुआत में हिंदुस्तान, अमर उजाला और दैनिक जागरण जैसे अखबारों में फ्रीलांस करने के बाद स्थानीय अखबारों और मै...और देखें

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