जिनका दुनिया में कोई नहीं...उनके मोक्ष का मार्ग खोलता है ये परिवार; चौथी पीढ़ी लावारिश शवों का कर रही अंतिम संस्कार

रोहतक : दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए रोहतक में पिछले 50 वर्षों से एक परिवार की चार पीढ़ियां लावारिश अस्थियों को गंगा में प्रवाहित कर रहा है। 40 साल के सचिन के परदादा, फिर दादा, पिता और अब खुद सचिन आर्य लावारिश शवों की अस्थियों को हरिद्वार गंगा में पूरे विधि विधान के साथ प्रवाहित करते हैं। सचिन ने कहा कि ये उन लोगों की अस्थियां होती हैं, जो लावारिश पाए गए या उनके परिजन अंतिम संस्कार के बाद उनकी अस्थियां लेने नहीं आये। लिहाजा सचिन साल में दो बार अस्थियां इकट्ठा कर हरिद्वार ले जाते हैं और विधि विधान के साथ उन्हें गंगा में प्रवाहित कर उनके मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं!
लावारिस अस्थियां हरिद्वार में की जाती हैं प्रवाहित
प्राचीन मान्यता है कि अंतिम संस्कार करने के बाद यदि अस्थियों को गंगा में प्रवाहित किया जाए तो दिवंगत आत्मा को मोक्ष मिलता है। इसी जिम्मेदारी को रोहतक के एक परिवार की चार पीढ़ियां अनवरत निभा रही हैं। पिछले 50 वर्षों में लावारिस अस्थियां ले जाकर हरिद्वार में प्रवाहित करते हैं। उनका दावा है कि अब तक उनके परिवार की ओर से लगभग 20 हजार अस्थियों को गंगा में प्रवाहित किया जा चुका है। इसके पीछे परिवार का मकसद दिवंगत आत्मा को मोक्ष प्राप्त करवाना है।
मूल रूप से रोहतक के रहने वाले सचिन आर्य बताते हैं कि उनके परिवार में उनके परदादा उसके बाद उनके दादाजी फिर उनके पिताजी और अब वह स्वंय लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
चौथी पीढ़ी निभा रही जिम्मेदारी
सचिन आर्य ने बताया कि उन्हें यह प्रेरणा उनके परिजनों से मिली है। उनकी चार पीढ़ियां लावारिश शवों की अंतिम संस्कार कर अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करते हैं। इसके लिए आम लोगों का भी सहयोग मिलता है। उन्होंने कहा कि इस काम में उन्हें काफी सुख की अनुभूति होती है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी लोग शवों को हाथ लगाने से डरते थे, जबकि हमने सभी शवों का अंतिम संस्कार किया और जो लोग अस्थियां नहीं लेकर गए उन्हें गंगा में प्रवाहित करवाया। उन्होंने कहा अब उनके बच्चे भी चाहते हैं कि वह अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करें और इस सिलसिले को आगे बढ़ाएं।
सचिन ने बताया कि उन्होंने अपने पिता परदादा को अस्थियां प्रवाहित करते देखता था। उन्हीं से प्रेरणा मिली है। सचिन का मानना है की दिवंगत आत्मा को मोक्ष प्राप्त हो जाए इससे उन्हें आत्म संतुष्टि मिलती है इसलिए वह यह काम कर रहे हैं।
वहीं आसपास के लोग भी सचिन आर्य के इस कार्य की सराहना कर रहे हैं। लोगों का कहना है सचिन के परिजन यह काम करते आए हैं और इससे उन्हें भी प्रेरणा मिल रही है। लावारिस शवो का अंतिम संस्कार कर उनकी अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करवाना पुण्य का काम है। सचिन को देखकर वह भी काफी उत्साहित हैं और इस नेक काम में भागीदार बनना चाहते हैं।
प्राचीन शिव मंदिर श्मशान घाट में होता है अंतिम संस्कार
गौरतलब है रोहतक में प्राचीन शिव मंदिर श्मशान घाट में हर महीने सैकड़ों शवो का अंतिम संस्कार किया जाता है, लेकिन बहुत सारे शव ऐसे हैं जो लावारिस हालत में मिलते हैं या फिर आश्रमों से श्मशान घाट में आते हैं। उन शवो का अंतिम संस्कार कर उनकी अस्थियों को हरिद्वार ले जाकर गंगा में प्रवाहित किया जाता है।
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