दिल्ली

निजामुद्दीन के ऐतिहासिक बारापुला पुल का होगा कायाकल्प; ASI के संरक्षण में टूटी मीनारों को मिलेगी पुरानी भव्यता

दिल्ली के निजामुद्दीन में स्थित 400 साल पुराने बारापुला पुल को उसके ऐतिहासिक और भव्य स्वरूप में पुनर्जीवित किया जा रहा है। संरक्षण कार्य के तहत पुल की टूटी मीनारों का पुनर्निर्माण और सतह की सफाई की जाएगी। एएसआई इस परियोजना में कुशल कारीगरों की मदद से इसे एक आकर्षक पर्यटन स्थल में बदल रहा है।
Barapullah Bridge, Delhi (Photo: Wikipedia)

बारापुला ब्रिज, दिल्ली (फोटो: विकिपीडिया)

Barapullah Bridge Restoration: दिल्ली के निजामुद्दीन क्षेत्र में स्थित 400 साल पुराने ऐतिहासिक बारापुला पुल को अब उसके मूल और भव्य स्वरूप में पुनः संवारने की तैयारी शुरू हो गई है। इसके अंतर्गत पुल की टूटी हुई दो मीनारों का पुनर्निर्माण किया जाएगा, और केमिकल क्लीनिंग की मदद से इसकी सतह की सफाई की जाएगी।

परियोजना के तहत पुल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा, जहां बैठने की व्यवस्था और आकर्षक रोशनी की योजना भी बनाई जा रही है। इसके अलावा, पुल पर सूचनात्मक बोर्ड लगाए जाएंगे, जिनमें न केवल बारापुला पुल का इतिहास बताया जाएगा, बल्कि दिल्ली के समृद्ध अतीत और पास के अन्य स्मारकों की जानकारी भी उपलब्ध होगी।

पर्यटन स्थल के रूप में पुनर्जीवित

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अनुसार, लंबे समय से उपेक्षित इस पुल के निचले हिस्से में आई दरारों को भरने का काम किया जाएगा और आवश्यकता अनुसार अन्य संरक्षण कार्य भी कराए जाएंगे। करीब 200 मीटर लंबे इस ऐतिहासिक पुल के आसपास पहले काफी अतिक्रमण और कचरे की समस्या थी, जिसे हटाने के बाद अब इसे पूरी तरह से एक आकर्षक और ऐतिहासिक पर्यटन स्थल के रूप में पुनर्जीवित किया जा रहा है। बीते साल उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने बारापुला पुल का निरीक्षण किया था और इसके संरक्षण की जिम्मेदारी एएसआई को सौंपी गई थी।

कैसे मिला बारापुला का नाम?

एएसआई के अधिकारियों के अनुसार, यह संरक्षण कार्य लगभग दो महीने में पूरा कर लिया जाएगा। मुगल सम्राट जहांगीर के शासनकाल में बनाए गए इस ऐतिहासिक पुल को उसकी पुरानी चमक और भव्यता लौटाई जाएगी। इतिहास के अनुसार, पुल का निर्माण 1612-13 से 1621-22 के बीच हुआ था और इसे 12 खंभों और 11 मेहराबों की बनावट के कारण ‘बारापुला’ नाम दिया गया।

काम में जुटे 25 से 30 कारीगर

पुल के संरक्षण के लिए एएसआई ने राजस्थान और उत्तर प्रदेश के अनुभवी कारीगरों से संपर्क किया है। लगभग 25 से 30 कारीगर इस काम में जुटेंगे। इस कार्य में लाखौरी ईंटों और लाइम प्लास्टर का उपयोग किया जाएगा। एएसआई के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि संरक्षण कार्य की सबसे बड़ी चुनौती कुशल और अनुभवी कारीगरों को ढूंढना है, क्योंकि हर कारीगर स्मारक संरक्षण का काम करने में सक्षम नहीं होता।

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    Nilesh Dwivedi author

    निलेश द्विवेदी वर्तमान में टाइम्स नाऊ नवभारत की सिटी टीम में 17 अप्रैल 2025 से बतौर ट्रेनी कॉपी एडिटर जिम्मेदारी निभाते हैं। उत्तर प्रदेश के महाराजगंज...और देखें

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