टोपीबाजों के चचा हैं ये, एक साथ 6 नौकरी कर सरकार को लगाया करोड़ों का चूना

एक ही नाम से 6 जगह सरकारी नौकरी कर रहे टोपीबाज (फोटो - AI)
टोपीबाज यानी धोखेबाजों की एक से बढ़कर एक कहानियां आपने पढ़ी और सुनी होंगी। लेकिन जिस टोपीबाज की कहानी हम बता रहे हैं, उसकी कहानी सुनकर और पढ़कर आप भी कहेंगे कि ये तो सभी टोपीबाजों का चचा निकला। यह कहानी किसी एक शख्स या एक जिले की नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के कई जिलों से जुड़ी है। जहां एक व्यक्ति के फर्जी नाम पर यह धंधा चल रहा था, चलिए जानते हैं -
दरअसल उत्तर प्रदेश में सरकारी भर्ती से जुड़े एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश हुआ है। आगरा जिले के शाहगंज थाना क्षेत्र का रहने वाला अर्पित सिंह इस फर्जीवाड़े के केंद्र में है। हैरानी की बात यह है कि अर्पित सिंह नाम का इस्तेमाल करते हुए कई जिलों में अलग-अलग आधार नंबरों के जरिए अलग-अलग लोग सरकारी नौकरी कर रहे थे। यह घोटाला तब सामने आया जब मानव संपदा पोर्टल पर जांच की गई और पता चला कि अर्पित सिंह नाम का कोई वास्तविक कर्मचारी मौजूद ही नहीं है।
बलरामपुर, फर्रुखाबाद, रामपुर, बांदा, अमरोहा और शामली पुलिस ने उसके खिलाफ मामले दर्ज किए हैं। फर्रुखाबाद में अर्पित का नाम पिछले 9 साल से एक्स-रे टेक्नीशियन के रूप में दर्ज था, और वह लाखों रुपये की सैलरी और सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाता रहा।
अर्पित के पिता अनिल सिंह का कहना है कि उन्हें इस फर्जीवाड़े की जानकारी नहीं थी। उन्होंने बताया कि बेटे की पहली नौकरी साल 2016 में हाथरस जिले में लगी थी और उसने गाजियाबाद से डिप्लोमा किया था। अखबार में खबर छपने के बाद ही उन्हें इस पूरे मामले की जानकारी हुई। पिता ने निष्पक्ष जांच की मांग की है।
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जांच में सामने आया है कि आरोपियों ने हर जगह नाम, पिता का नाम और पता एक जैसा रखा, लेकिन अलग-अलग जिलों में अलग-अलग आधार नंबरों का इस्तेमाल किया। उदाहरण के लिए, अमरोहा में उसने खुद को मैनपुरी निवासी बताया और आधार संख्या 339807337433 दिया, जबकि बलरामपुर में उसने शाहगंज, आगरा का पता और आधार नंबर 525449162718 दिया। इसी तरह फर्रुखाबाद, रामपुर, बांदा और शामली में भी अलग-अलग नंबर दिए।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अर्पित हर महीने 65,595 रुपये सैलरी ले रहा था। केवल एक जिले से ही उसने 9 साल में 75 लाख रुपये से अधिक सैलरी ली। अनुमान है कि छह जिलों में उसकी फर्जी सैलरी तीन करोड़ रुपये से ज्यादा हो सकती है।
पुलिस अब इस पूरे नेटवर्क की जांच में जुट गई है। यह मामला सिस्टम की खामियों और लापरवाही की ओर इशारा करता है, जिसने एक फर्जी नाम के सहारे सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये की ठगी को संभव बनाया।
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