मुझे दुगनी मुहब्बत से सुनो उर्दू ज़बां वालों..., हिंदी का वो मास्टर जिसने उर्दू को भी दिया मौसी का दर्जा

Kumar Vishwas Inspirational Story on Hindi Diwas 2025 (Photo Credit: Dr Kumar Vishwas Website
Dr Kumar Vishwas Inspirational Story on Hindi Diwas 2025: "कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है...", ये पंक्तियां सुनते ही युवा दिलों की धड़कन तेज हो जाती है। ये पंक्तियां युवाओं के लिए लव एंथम से कम नहीं हैं। इन्हें लिखने वाले कोई और नहीं बल्कि कवि सम्मेलनों के मंच पर सबसे ज्यादा डिमांड रखने वाले डॉ. कुमार विश्वास हैं। भारत में 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। 14 सितंबर 1949 को भारत की संविधान सभा में एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया। इस दिन, संविधान के निर्माताओं ने अनुच्छेद 343 के तहत यह तय किया कि देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषा होगी। इसके बाद 14 सितंबर को यह दिवस मनाया जाने लगा। राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना, इसके महत्व के प्रति दुनियाभर में रह रहे लोगों में हिंदी के प्रति जागरूकता पैदा करना है। हिंदी दिवस के अवसर पर जानें कैसे हिंदी के एक टीचर ने अपनी कविताओं से नई पीढ़ी और हिंदी भाषा के बीच सेतु का काम किया। हिंदी के इस नामचीन कवि ने हिंदी को ना केवल सात समंदर पार पहुंचाया बल्कि उर्दू मुशायरों में भी हिंदी की कविता सुनाकर हिंदी को मां और उर्दू को मौसी बताया।
Who is Kumar Vishwas: कौन हैं डॉ कुमार विश्वास
जब हम ‘हिंदी’ की बात करते हैं तो हमारे मन में कई छवियां उभरती हैं और उनमें डॉ. कुमार विश्वास का नाम सबसे प्रमुखता से सामने आता है। अपनी कविताओं, शायरी, बेहतरीन संवाद अदायगी और सुरीली आवाज के माध्यम से उन्होंने ‘हिंदी’ को वैश्विक स्तर पर सम्मान और प्रतिष्ठा दिलाई है। कुमार विश्वास का जन्म 10 फरवरी 1970 को उत्तर प्रदेश के पिलखुवा कस्बे के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उन्होंने यहां के लाला गंगा सहाय स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। उनके पिता चंद्रपाल शर्मा पिलखुवा के आरएसएस डिग्री कॉलेज में लेक्चरर थे। उन्होंने राजपूताना रेजिमेंट इंटर कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की और बाद में मोतीलाल नेहरू क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया। इंजीनियरिंग में रुचि न होने के कारण उन्होंने इंजीनियरिंग छोड़ दी और फिर हिंदी साहित्य का विकल्प चुना, जिसमें उन्होंने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। 1994 में वे राजस्थान के पीलीबंगा स्थित इंद्रा गांधी पीजी कॉलेज में लेक्चरर बने और लाला लाजपत राय कॉलेज में हिंदी साहित्य भी पढ़ाया।
Koi deewana kehta hai: वो गीत जिसने कुमार विश्वास को हर दिल अजीज बनाया
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है !
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!
मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है !
कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !!
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं !
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !!
समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नहीं सकता !
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नहीं सकता !!
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !
जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता !!
भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का!
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!!
Hindi Diwas: सात समंदर पार हिंदी को ले जाने वाले कवि
भाषाओं का उम्दा ज्ञान और व्याकरण, विश्लेषण एवं अलंकार पर जबरदस्त पकड़ रखने वाले, कवि डॉ कुमार विश्वास हिंदी, संस्कृत और उर्दू की व्यापक समझ रखते हैं। हिंदी भाषा को आसान शब्दों के साथ कविता के रूप में पिरोकर सात समंदर पार ले जाने का काम उन्होंने किया है।उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन, दुबई, ओमान, सिंगापुर और जापान जैसे देशों में कविता पाठ में भाग लिया। अनगिनत मंचों पर डॉ. कुमार विश्वास की खनकती और मधुर आवाज ने लोगों को और खासकर नई पीढ़ी को हिंदी की ओर आकर्षित किया है। कोई साक्षर हो या निरक्षर, कुमार विश्वास के गीत और कविता सभी की जुबान पर चढ़ जाती है। कुमार विश्वास ने दुनिया को कविता और हिंदी की अपार संभावनाओं का अहसास कराते हुए हिंदी को एक वैश्विक मंच प्रदान करने का काम किया।
Kumar Vishwas Famous Poem: कुमार विश्वास की कविता
जब भी मुंह ढंक लेता हूं
तेरे जुल्फों की छांव में
कितने गीत उतर आते हैं
मेरे मन के गांव में
एक गीत पलकों पर लिखना
एक गीत होंठों पर लिखना
यानि सारी गीत हृदय की
मीठी-सी चोटों पर लिखना
जैसे चुभ जाता है कोई कांटा नंगे पांव में
ऐसे गीत उतर आते हैं, मेरे मन के गांव में
इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ बन गए कवि
डॉ कुमार विश्वास एक ऐसा नाम है जिसने दिल की आवाज सुनकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ दी और हिंदी की सेवा में समर्पित हो गए। प्रेम एवं श्रृंगार के कवि, शब्दों के जादूगर जब मंच से सुनाते हैं— “जो धरती से अम्बर जोड़े , उसका नाम मोहब्बत है, जो शीशे से पत्थर तोड़े, उसका नाम मोहब्बत है"—तो युवाओं को प्रेम-गान मिल जाता है। बाजार का युग है इसलिए किसी भाषा के लिए यह जरूरी है कि वह किसी तरह पूंजी से जुड़े और लोग उसमें रोजगार तलाशें। भाषा विज्ञानियों का कहना है कि किसी भी भाषा की उन्नति उसके अधिक से अधिक प्रसार में है। साथ ही किस भाषा में रोजगार के अवसर कितने हैं, इससे उस भाषा के समृद्ध होने का पता चलता है। डॉ कुमार विश्वास ने केवी स्टूडियो और कवि सम्मेलनों के मंच पर कवि कुल की नई पौध को रोपने का काम किया है। उन्होंने नई पीढ़ी के अनगित नए कवियों को मंच देने का काम किया है।
"ये उर्दू बज़्म है और मैं तो हिंदी मां का जाया हूं
ज़बानें मुल्क़ की बहनें हैं ये पैग़ाम लाया हूं
मुझे दुगनी मुहब्बत से सुनो उर्दू ज़बां वालों
मैं हिंदी माँ का बेटा हूं, मैं घर मौसी के आया हूं"
उर्दू को भी दिया मौसी का दर्जा
आज के सबसे लोकप्रिय कवि जिन्होंने युवाओं को अपने गीतों पर झूमने को मजबूर कर दिया। उनकी हिंदी कविताओं में सहजता की डोर है। वे जानते हैं कि सुनने वालों को हिंदी साहित्य के आसमान पर कैसे रोके रखा जा सकता है। वे उन विरले कवियों में से एक हैं जो उर्दू मुशायरों में जाकर गर्व से हिंदी गीत गाते हैं। कुमार विश्वास आज भारत में हिंदी कविताओं के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित हो चुके हैं।
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