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पहले नाटो चीफ की धमकी, अब भारतीय रिफाइनरी कंपनी पर EU का प्रतिबंध, क्या भारत पर दबाव बना रहे पश्चिमी देश?

रूस-यूक्रेन के बीच पीस डील कराने की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कोशिशें पटरी से उतर गई हैं। दोनों देशों के बीच शांति समझौता कराने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ने कई बार कोशिश की। उन्होंने फोन पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फोन पर कई बार बात की। अमेरिकी मध्यस्थता में दोनों देशों के बीच कई बार बातचीत भी हुई लेकिन इस दौरान दोनों देश एक दूसरे पर हमले भी करते रहे।
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भारतीय तेल रिफाइनरी कंपनी पर ईयू ने लगाया प्रतिबंध। तस्वीर-टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल

EU sanctions on Indian refinery : रूस पर युद्ध खत्म करने का दबाव बनाने के लिए यूरोपीय संघ (EU) ने शुक्रवार को बड़ा कदम उठाया और उस पर नए सिरे से आर्थिक प्रतिबंध लगाने की घोषणा की। इन प्रतिप्रंधों में रूस के ऊर्जा क्षेत्र, पुराने तेल टैंकरों के बेड़े और सैन्य खुफिया सेवा से जुड़े लोगों पर पाबंदी लगाई गई है। पाबंदियों की इस चपेट में भारत की एक तेल रिफाइनरी कंपनी नायरा एनर्जी लिमिटेड भी आई है। यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख काजा कल्लास ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर लिखा, 'पहली बार, हम भारत में रोसनेफ्ट की सबसे बड़ी रिफाइनरी को नामित कर रहे हैं।' यूरोपीय यूनियन के इस कदम की भारत ने आलोचना की है और कहा है कि उसे दोहरा रवैया मंजूर नहीं है।

यूरोप संघ ने क्या की है कार्रवाई

यूरोपीय संघ ने रूस की दिग्गज ऊर्जा कंपनी रोसनेफ्ट की भारतीय तेल रिफाइनरी पर प्रतिबंध लगाते हुए उसकी तेल मूल्य सीमा घटा दी है। रूस के खिलाफ किए गए उन उपायों में बैंकिंग और रूसी कच्चे तेल से बने ईंधन पर प्रतिबंध शामिल हैं। तेल मूल्य की कम सीमा इस समय 60 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल है। इसका अर्थ है कि रूस भारत जैसे खरीदारों को कम दरों पर अपना कच्चा तेल बेचने के लिए मजबूर होगा। रूसी तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार होने के नाते, भारत को इस कदम से लाभ होगा। इस समय भारत के कुल तेल आयात में रूसी कच्चे तेल का हिस्सा लगभग 40 प्रतिशत है। यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख काजा कल्लास ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर लिखा कि पहली बार, हम भारत में रोसनेफ्ट की सबसे बड़ी रिफाइनरी को नामित कर रहे हैं।

तेल रिफाइनरी का संचालन करती है नायरा एनर्जी लिमिटेड

रोसनेफ्ट की नायरा एनर्जी लिमिटेड में 49.13 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इसे पहले एस्सार ऑयल लिमिटेड के नाम से जाना जाता था। नायरा गुजरात के वडिनार में दो करोड़ टन प्रति वर्ष की क्षमता वाली एक तेल रिफाइनरी और 6,750 से अधिक पेट्रोल पंपों का संचालन करती है। एक निवेश समूह केसानी एंटरप्राइजेज कंपनी के पास नायरा में 49.13 प्रतिशत हिस्सेदारी है। केसानी का स्वामित्व रूस की यूनाइटेड कैपिटल पार्टनर्स (यूसीपी) और हारा कैपिटल सार्ल के पास है। यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों का मतलब है कि नायरा यूरोपीय देशों को पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधन का निर्यात नहीं कर सकती।

रूस के रक्षा बजट में कटौती करना चाहता है यूरोपीय संघ

कल्लास ने कहा, 'हमारे इरादे पक्के हैं। यूरोपीय संघ ने अभी-अभी रूस के खिलाफ अपने अब तक के सबसे कड़े प्रतिबंधों में से एक को मंजूरी दी है।' उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ पूरी कोशिश कर रहा है कि रूस के रक्षा बजट में कटौती हो और रूसी बैंकों की वित्तपोषण तक पहुंच को सीमित किया जा रहा है। ईयू के प्रतिबंधों में नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइनों पर प्रतिबंध और रूस द्वारा तेल निर्यात की कीमतों की निचली सीमा शामिल है। इससे पहले जी7 देशों ने दिसंबर 2022 में तीसरे देशों को बेचे जाने वाले रूसी तेल पर 60 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल की मूल्य सीमा लगा दी थी। इस व्यवस्था के तहत, पश्चिमी बीमा और पोत परिवहन सेवाओं का उपयोग केवल तभी किया जा सकता है, जब तेल निर्धारित मूल्य पर या उससे कम पर बेचा जाए। इसका मकसद वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति में स्थिरता बनाए रखते हुए रूस के तेल राजस्व को सीमित करना था।

रूस के खिलाफ मोर्चेबंदी तेज हुई

दरअसल, रूस-यूक्रेन के बीच पीस डील कराने की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कोशिशें पटरी से उतर गई हैं। दोनों देशों के बीच शांति समझौता कराने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ने कई बार कोशिश की। उन्होंने फोन पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फोन पर कई बार बात की। अमेरिकी मध्यस्थता में दोनों देशों के बीच बातचीत भी हुई लेकिन इस दौरान दोनों देश एक दूसरे पर हमले भी करते रहे। लेकिन यूक्रेन के 'ऑपरेशन स्पाइडर वेब' के बाद रूस ने कीव पर हमले तेज कर दिए। यूक्रेन ने अपने ड्रोन हमले वाले इस ऑपरेशन में कथित रूप से रूस के करीब 40 स्ट्रेटेजिक बॉम्बर नष्ट कर दिए। इसके बाद रूस ने ड्रोन और मिसाइलों से कीव और अन्य शहरों को निशाना बनाकर भीषण हमले किए जिनमें आम नागरिकों की मौत हुई। इसके बाद नाटो जिसमें ज्यादातर यूरोप के देश हैं, उसने और अमेरिका ने तय किया है कि वे यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति तेज करेंगे। अब उन्होंने आर्थिक मोर्चे पर भी रूस को घेरने का फैसला किया है। सैन्य और आर्थिक दोनों मोर्चों पर रूस की घेरेबंदी तेज हो गई है।

इसलिए भारत से खुन्नस में हैं पश्चिमी देश

24 फरवरी 2022 को रूस ने यूक्रेन पर धावा बोला। इसके बाद अमेरिकी और नाटो के देशों को उम्मीद थी भारत भी उनके साथ खड़ा होगा लेकिन नई दिल्ली ने तटस्थता की नीति अपनाई। पश्चिमी देश चाहते थे कि संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ लाए गए प्रस्तावों का भारत समर्थन और मास्को की निंदा करे लेकिन भारत ने न तो उनके प्रस्तावों का समर्थन किया और न ही यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा की। युद्ध शुरू करने के लिए पश्चिमी देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए। इसमें रूस से तेल एवं गैस खरीदना भी शामिल था। ये चाहते थे कि भारत, रूस से तेल खरीदना बंद करे लेकिन भारत ने रूस से तेल का आयात और बढ़ा दिया। रूस से आयातित तेल को भारतीय कंपनियां रिफाइन कर उस तेल को वापस यूरोप को बेचकर मोटी कमाई करती रहीं। यानी रूस-यूक्रेन युद्ध मामले में अमेरिका और पश्चिमी देशों की मंशा भारत ने नहीं पूरी की। एक्सपर्ट का मानना है कि ये देश भले ही इस बात का खुलकर विरोध भारत से न करें लेकिन उनके मन में यह टीस बनी हुई है। रूस से तेल खरीदने पर यूरोपीय देशों ने जब आपत्ति की तो इसका जवाब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बखूबी दिया। यूरोपीय देशों को आईना दिखाते हुए जयशंकर ने कहा कि जितना तेल भारत रूस से एक पखवाड़े में खरीदता है उससे कहीं ज्यादा तेल यूरोप एक दिन में मास्को से खरीदता है।

नाटो प्रमुख ने भी दी भारत को धमकी

कुछ दिन पहले यह टीस नाटो प्रमुख मार्क रूट के बयान में भी झलकी। रूट ने तो खुले तौर पर भारत को धमकी दी। यहां तक कहा दिया कि भारत के प्रधानमंत्री को फोन कर पुतिन से कहना चाहिए कि युद्ध बंद करें। भारत, चीन और ब्राजील यदि रूस से कारोबार करते हैं तो उन्हें प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। इन प्रतिबंधों के जरिए पश्चिमी देश रूस से तेल न खरीदने के लिए भारत पर दबाव बनाना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि भारत, रूस से तेल न खरीदे और व्यापार न करे लेकिन उन्हें नहीं पता कि यह आज का भारत है। वह किसी के दबाव में नहीं आता है। वह वही करता है जो देश हित में होता है। यह बात भारत कई बार साफ कर चुका है कि वह किसी के दबाव में नहीं आने वाला। वह अपने हितों के अनुरूप आगे बढ़ेगा।

भारत का करारा जवाब, 'दोहरे मापदंड' से बचे यूरोप

अब ईयू के ताजा प्रतिबंधों पर भरतीय विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने X पर पोस्ट अपने बयान में कहा कि 'भारत एकतरफा प्रतिबंधों को मान्यता नहीं देता और यूरोपीय संघ से खास तौर पर ऊर्जा व्यापार के मामले में 'दोहरा मापदंड' अपनाने से बचने की अपील की।अपने बयान में उन्होंने कहा कि हमने यूरोपीय संघ द्वारा घोषित ताजा प्रतिबंधों को देखा है। भारत किसी भी एकतरफा प्रतिबंधात्मक उपायों का समर्थन नहीं करता। हम एक जिम्मेदार देश हैं और अपनी कानूनी जिम्मेदारियों के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं। भारत सरकार के लिए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना सर्वोच्च प्राथमिकता है ताकि नागरिकों की बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जा सके। हम यह जोर देना चाहेंगे कि विशेष रूप से ऊर्जा व्यापार के मामले में कोई दोहरा मापदंड नहीं होना चाहिए।

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आलोक कुमार राव author

आलोक कुमार राव न्यूज डेस्क में कार्यरत हैं। यूपी के कुशीनगर से आने वाले आलोक का पत्रकारिता में करीब 19 साल का अनुभव है। समाचार पत्र, न्यूज एजेंसी, टेल...और देखें

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