जिन्ना के धोखे की कहानी है बलूचिस्तान, मीर अहमद खान का अपहरण कर विलय पर जबरन कराया दस्तखत

बलूचिस्तान की कहानी।
How Balochistan Become Part Of Pakistan: बलूचिस्तान का नाम आपने सुना होगा। आज ही के दिन यानी 28 मार्च 1948 को पाकिस्तान ने बलूचिस्तान के आखिरी आजाद प्रांत कलात पर कब्जा कर लिया था। पाकिस्तानी सेना ने बलूचिस्तान के राजा का अपहरण कर उनसे जबरन विलय संधि पर दस्तख़त करा लिए थे। इसके पीछे भारत की लापरवाही भी जिम्मेदार थी। क्या थी बलूचिस्तान के ऐतिहासक कलात राजवंश की कहानी जो एक आजाद देश के तौर पर महज 225 दिनों तक वजूद में रह पाया। उसके बाद पाकिस्तान ने इस मुल्क पर कब्जा कर लिया। बलूचिस्तान मोहम्मद अली जिन्ना के धोखे की भी कहानी है जो उन्होंने अपने दोस्त और बलूचिस्तान के आखिरी राजा मीर अहमद को दिया। आज जो बलूचिस्तान एक बार फिर भारत की तरफ उम्मीद भरी नज़रों से देख रहा है।
बलूचिस्तान में थीं चार रियासतें
आज जिसे हम बलूचिस्तान के नाम से जानते हैं एक वक्त वहां चार रियासतें हुआ करती थीं। कलात, खारान, लॉस बुला और मकरान। बलूची आबादी ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान तीनों मुल्कों में रहती है। इनका ये साझा इलाका बलूचिस्तान के नाम से जाना जाता है। हालांकि हम यहां उस बलूचिस्तान की बात करने जा रहे हैं जो पाकिस्तान के कब्जे में है। पाकिसतान का सबसे बड़ा सूबा है। 1870 में अंग्रेजों ने कलात की ख़ान सल्तनत से एक संधि कर ली जिससे ये रियासतें अंग्रेजों के अधीन आ गईं। इसके बावजूद ब्रिटिश सरकार का इन पर सीधा कंट्रोल नहीं था। अंग्रेजों की फौज की एक टुकड़ी रूसी आक्रमण से निपटने के लिए ज़रूर यहां तैनात रहती, लेकिन वो राजकाज के कामों में दखल नहीं देते थे।
तीन रियासतें ने पाकिस्तान को चुना
जब भारत का विभाजन तय हो गया तब कलात को छोड़कर बाकी तीनों रियासतों ने पाकिस्तान के साथ जाना चुना। कलात के मीर अहमद खान अपने मुल्क को आजाद रखने की मंशा रखते थे। 1946 में जब कैबिनेट मिशन भारत आया तब मीर अहमद ने अपना एक वकील मिशन के पास भेजा। जानते हैं ये वकील कौन था- मोहम्मद अली जिन्ना। जी हां बाद में पाकिस्तान के कायदे आज़म बने मोहम्मद अली जिन्ना की मीर अहमद खान से गहरी दोस्ती थी। जिन्ना ने तब कैबिनेट मीशन में मीर अहमद का पक्ष रखते हुए कहा था, "बंटवारे की शर्तों में कलात को आजाद डिक्लेयर किया जाना चाहिए, क्योंकि कलात की संधि ब्रिटिश इंडिया सरकार से नहीं बल्कि सीधे ब्रिटिश क्राउन से हुई थी।"
इसके अलावा मीर अहमद ने समद खान नाम के एक बलोच नेता को जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात के लिए भी भेजा, लेकिन नेहरू ने कलात को आजाद मानने से इनकार कर दिया। इन कवायदों का कोई फायदा नहीं निकला तो कलात के खान खुद दिल्ली आए। 4 अगस्त 1947 को दिल्ली में एक राउंड टेबल मीटिंग थी जिसमें वॉयसराय लॉर्ड माउंटबेटन और जिन्ना भी मौजूद थे। इस मीटिंग में तय हुआ कि कलात एक आजाद देश रहेगा और खारान और लॉस बुला का भी उसमें विलय कराया जाएगा। इसके एक हफ्ते बाद 11 अगस्त 1947 को मुस्लिम लीग और कलात के बीच एक साझा घोषणापत्र पर हस्ताक्षर हुए जिसमें लीग ने माना की कलात की अपनी अलग पहचान है और लीग उसकी आजादी का सम्मान करता है।
जिन्ना ने रख दी थी विलय की मांग
15 अगस्त को भारत आजाद हुआ। इसके ठीक अगले दिन यानी 16 अगस्त को कलात ने अपनी आजादी की घोषणा कर दी। कलात में तुरंत संसद का गठन हुआ। संसद के दोनों सदनों से कलात की आजादी का प्रस्ताव पारित हुआ। हालांकि 21 अगस्त 1947 को खारान के शासक मीर हबीबुल्ला ने जिन्ना के नाम एक खत लिखा कि मेरी सल्तनत कभी कलात के काबू में नहीं आएगी। हम उनका भरपूर विरोध करेंगे। लॉस बुला ने भी कलात में मिलने से इनकार कर दिया। अक्टूबर में खुद जिन्ना ने कलात से पाकिस्तान में विलय की मांग रख दी। इस पर कलात की संसद ने जवाब दिया, "अफगानिस्तान और ईरान की तरह हमारी संस्कृति भी पाकिस्तान से अलग है। महज मुस्लिम होने से हम पाकिस्तानी नहीं हो जाते। अगर ऐसा है तो फिर तो ईरान और अफगानिस्तान को भी पाकिस्तान में विलय कर लेना चाहिए।"
लेकिन जिन्ना अपने मिशन पर लगे हुए थे। 17 मार्च 1948 को बलूचिस्तान की बाकी रियासतों खारान, लॉस बुला और मकरान का पाकिस्तान में विलय करवा लिया गया। कलात के राजा पर दबाव बढ़ने लगा। वो भारत में विलय करना चाहते थे, लेकिन भारत की तरफ से 27 मार्च 1948 को ऑल इंडिया रेडियो पर वीके मेनन के हवाले से कहा गया कि कलात के खान पाकिस्तान की बजाय भारत में विलय की बात कर रहे हैं। लेकिन भारत का इस मुद्दे से कुछ लेना-देना नहीं है। चूकि मेनन अब सरदार पटेल के साथ रियासतों के विलय की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। इसलिए उनके बयान पर हंगामा बरप गया। पाकिस्तान तो इसी फिराक में था।
ठीक अगले दिन 28 मार्च को जिन्ना ने अपने पुराने दोस्त कलात के मीर अहमद खान की रियासत पर हमला बोल दिया। सेना ने चढ़ाई की और खान का अपहरण कर उन्हें कराची लाया गया। जहां उनसे जबरदस्ती विलय पत्र पर दस्तखत करवा लिया गया। इस तरह आजादी के 225 दिन बाद कलात पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया। चूकि यह विलय पत्र सेना द्वारा जबरन साइन करवाया गया था इसलिए बलूचिस्तान के लोग आजादी की मांग करते रहते हैं। बलूचिस्तान वैसे तो पाकिस्तान का सबसे बड़ा सूबा है लेकिन यहां के लोग सरकार के भेदभाव पूर्ण नीति से परेशान हैं। आए दिन बलूची विद्रोहियों और पाकिस्तानी सेना में झड़प होती रहती है। कई लोग बलूचिस्तान को अगला बांग्लादेश भी कहते हैं।
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सत्याग्रह की धरती चंपारण से ताल्लुक रखने वाले आदर्श शुक्ल 10 सालों से पत्रकारिता की दुनिया में हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय और IIMC से पत्रकारिता की पढ़ा...और देखें

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