मॉडर्न इंडिया की धड़कन: कैसे होता है किसी एक्सप्रेसवे का निर्माण, क्या होती हैं शर्तें और प्रक्रिया, आसान भाषा में समझिए

कैसे बनते हैं भारत में एक्सप्रेसवे?
भारत में इस समय एक्सप्रेसवे का निर्माण रफ्तार पकड़े हुए हैं, अगर कहा जाएगा कि आज भारत में एक्सप्रेसवे मॉर्डन इंडिया की धड़कन बना हुआ है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। वर्तमान दुनिया में तेज यातायात नेटवर्क किसी भी देश के लिए काफी जरूरी है और भारत इस मामले में दुनिया के उन चंद देशों में शुमार है, जो इसपर तेजी से काम कर रहे हैं। आज देश की राजधानी दिल्ली को आर्थिक राजधानी मुंबई से जोड़ना हो या देश के सबसे बड़े राज्य यूपी के एक कोने से दूसरे कोने तक जाना हो, इन सुपरफास्ट सड़कों के नेटवर्क ने इसे काफी आसान बना दिया है। सफर का समय घंटों कम हो चुका है, गाड़ियां अब रेंगती नहीं, बल्कि तेज गति से फर्राटे भरते हुए एक शहर से दूसरे शहर मात्र कुछ घंटे में पहुंच जाती हैं। अब सवाल ये है कि इन सुपरफास्ट सड़कों का नेटवर्क तैयार कैसे होता है, कैसे भारत में एक्सप्रेसवे के निर्माण की कहानी शुरू होती है, इसकी क्या प्रक्रिया और शर्ते हैं? आइए इसे समझते हैं।
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एक्सप्रेसवे निर्माण का पहला चरण- रूट सेलेक्शन
एक्सप्रेसवे का निर्माण एक विस्तृत और व्यवस्थित प्रक्रिया होती है, जो देश की यातायात व्यवस्था को बेहतर बनाने और यात्रा को तेज, सुरक्षित और आरामदायक बनाने के लिए की जाती है। भारत में एक्सप्रेसवे निर्माण के पीछे नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) प्रमुख एजेंसी है, जो योजना, निर्माण और रखरखाव की जिम्मेदारी संभालती है। एक्सप्रेसवे के निर्माण के लिए मुख्य रूप से मार्गों का चयन ट्रैफिक के आधार पर ही किया जाता है। एक्सप्रेसवे निर्माण का पहला और सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है मार्ग का चयन, जिसे ‘रूट सेलेक्शन’ कहा जाता है। इस प्रक्रिया में सबसे पहले उस इलाके का विस्तृत सर्वे किया जाता है। विशेषज्ञ इंजीनियर, भूगोलवेत्ता, पर्यावरण विज्ञानी और ट्रैफिक विश्लेषक मिलकर इलाके की भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति का अध्ययन करते हैं। मार्ग चुनते समय कई बातों का ध्यान रखा जाता है- जैसे जमीन की टोपोग्राफी (पहाड़, नदियां, मैदान), आसपास के गांव और शहर, जंगल, जल स्रोत और पर्यावरणीय प्रभाव। साथ ही, यह भी देखा जाता है कि एक्सप्रेसवे किन प्रमुख शहरों, औद्योगिक क्षेत्रों और व्यापारिक केंद्रों को जोड़ सकता है, ताकि उसका उपयोग ज्यादा हो और वह आर्थिक रूप से सार्थक साबित हो। ट्रैफिक की वर्तमान और भविष्य की मांगों का आंकलन करके यह तय किया जाता है कि किस रास्ते से वाहन ज्यादा संख्या में और आसानी से गुजर सकेंगे। पर्यावरण और स्थानीय समुदायों पर पड़ने वाले प्रभाव का भी गहराई से विश्लेषण किया जाता है ताकि विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक संतुलन भी बना रहे। इन सभी पहलुओं को मिलाकर कई संभावित मार्गों को तैयार किया जाता है, जिनमें से सबसे उपयुक्त, सुरक्षित और किफायती मार्ग को अंतिम रूप दिया जाता है।
एक्सप्रेसवे निर्माण का दूसरा चरण
मार्ग चयन के बाद एक्सप्रेसवे निर्माण का दूसरा चरण शुरू होता है, जहां इसके निर्माण की योजना बनाई जाती है, जिसे डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) तैयार करना कहा जाता है। इस चरण में चुने हुए मार्ग के आधार पर पूरी सड़क परियोजना की विस्तार से योजना बनाई जाती है। सबसे पहले, डीपीआर में मार्ग की तकनीकी डिजाइन तैयार की जाती है, जिसमें सड़क की लेन संख्या, चौड़ाई, पुल, फ्लाईओवर, टोल प्लाजा, ड्रेनेज सिस्टम, सुरक्षा इंतजाम और यातायात प्रबंधन की विस्तृत जानकारी शामिल होती है।
- परियोजना का खाका: यह पूरे प्रोजेक्ट का एक खाका होता है, जिसमें परियोजना का शुरुआती बिंदु, अंतिम बिंदु, और बीच के जंक्शनों का विवरण होता है।
- सड़क का नक्शा: इसमें प्रस्तावित एक्सप्रेसवे का विस्तृत नक्शा होता है, जिसमें क्रॉस सेक्शन भी शामिल होते हैं।
- वित्तीय अनुमान और लागत: परियोजना की कुल लागत और वित्तीय अनुमान का विस्तृत विवरण होता है।
- भूमि अधिग्रहण की जानकारी: एक्सप्रेसवे के निर्माण के लिए कितनी भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा, इसका पूरा विवरण होता है।
- कनेक्टिंग सड़कें: स्थानीय यातायात को सुगम बनाने के लिए एक्सप्रेसवे को जोड़ने वाली सड़कों का विवरण होता है।
- कच्चे माल की आवश्यकताएं: निर्माण में लगने वाले सीमेंट, रेती, और बजरी जैसे कच्चे माल की आवश्यकता और विवरण भी इसमें शामिल होता है।
- उपकरणों का विवरण: निर्माण में उपयोग होने वाले उपकरणों और उनके किराए या खरीद के बारे में जानकारी होती है।
एक्सप्रेसवे निर्माण की आखिरी प्रक्रिया
मार्ग चयन और डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) के बाद एक्सप्रेसवे निर्माण की प्रक्रिया शुरू होती है, जो कई चरणों में पूरी होती है। सबसे पहले जमीन अधिग्रहण की औपचारिकताएं पूरी की जाती हैं। इसमें सरकार जमीन मालिकों से उनकी जमीन खरीदती है और उचित मुआवजा देती है। यह प्रक्रिया संवेदनशील होती है क्योंकि कई बार जमीन मालिक सहमत नहीं होते, इसलिए इसे पारदर्शी और न्यायसंगत तरीके से करना जरूरी होता है।
जमीन मिलने के बाद निर्माण कंपनियां अपना काम शुरू कर देती हैं। निर्माण स्थल की सफाई और तैयारी की जाती है। इसमें पेड़ हटाना, जमीन समतल करना और मजबूत आधार तैयार करना शामिल होता है। इसके बाद सड़क के लिए नींव डाली जाती है। सड़क निर्माण कई परतों में किया जाता है-सबसे नीचे मजबूत बेस लेयर, उसके ऊपर बजरी और पत्थरों की परतें और अंत में अस्फाल्ट या कंक्रीट की चिकनी सतह बनाई जाती है ताकि सड़क मजबूत और टिकाऊ बने। साथ ही, पुल, फ्लाईओवर, टनल और ड्रेनेज सिस्टम का निर्माण भी किया जाता है ताकि एक्सप्रेसवे सुचारू रूप से चले और बारिश या बाढ़ का असर न पड़े। सड़क किनारों पर गार्डरैल, रोड साइन, स्ट्रीट लाइटिंग, और आपातकालीन सेवाओं की व्यवस्था भी की जाती है।
एक्सप्रेसवे निर्माण की पूरी प्रक्रिया
चरण संख्या | चरण का नाम | विवरण |
---|---|---|
1. | मार्ग चयन | संभावित मार्गों का सर्वे किया जाता है- भूमि की स्थिति, ट्रैफिक डाटा, सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन होता है। |
2. | अध्ययन | तकनीकी, आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से यह देखा जाता है कि प्रोजेक्ट व्यावसायिक रूप से संभव है या नहीं। |
3. | डीपीआर तैयार करना | विस्तृत परियोजना रिपोर्ट बनाई जाती है, जिसमें डिजाइन, लागत, संसाधन और समय-सीमा तय होती है। |
4. | स्वीकृति और बजट आवंटन | केंद्र/राज्य सरकार, NHAI या अन्य एजेंसियां योजना को मंजूरी देती हैं और फंड स्वीकृत होता है। |
5. | पर्यावरण और अन्य मंजूरी | पर्यावरण मंत्रालय और अन्य नियामक संस्थाओं से अनिवार्य अनुमतियां ली जाती हैं। |
6. | भूमि अधिग्रहण | सड़क मार्ग पर आने वाली निजी, कृषि या सरकारी भूमि को कानूनी प्रक्रिया से अधिग्रहित किया जाता है। मुआवजा दिया जाता है। |
7. | ठेका आवंटन | निर्माण कार्य के लिए उपयुक्त निर्माण कंपनियों को टेंडर के जरिए चुना जाता है। |
8. | निर्माण कार्य प्रारंभ | सड़क की खुदाई, लेवलिंग, बेस लेयर, ब्रिज, अंडरपास, टोल प्लाजा आदि का निर्माण शुरू होता है। |
9. | सड़क की सतह निर्माण | कंक्रीट की परतें बिछाकर हाई-स्पीड लेन बनाई जाती है। साथ ही डिवाइडर, संकेत बोर्ड, स्ट्रीट लाइट लगती हैं। |
10. | गुणवत्ता जांच और निरीक्षण | निर्माण के बाद सड़क की मजबूती, सुरक्षा और डिजाइन मानकों की जांच की जाती है। |
11. | उद्घाटन और संचालन | सड़क जनता के लिए खोल दी जाती है। टोल संचालन शुरू होता है और रखरखाव का जिम्मा तय किया जाता है। |
एक्सप्रेसवे निर्माण के बाद निरीक्षण की प्रक्रिया
निर्माण कार्य पूरा होने के बाद, एक्सप्रेसवे की गुणवत्ता और सुरक्षा का कई बार निरीक्षण किया जाता है। अगर सभी मानक पूरे हो जाते हैं, तो सड़क को आम जनता के लिए खोल दिया जाता है। इसके साथ ही टोल प्लाजा लगाए जाते हैं, जिनसे रखरखाव के लिए धन जुटाया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय लोगों के हितों का ध्यान रखा जाता है ताकि एक्सप्रेसवे लंबे समय तक सुरक्षित और प्रभावी रूप से काम करता रहे। इस प्रकार, डीपीआर के बाद की प्रक्रिया एक्सप्रेसवे को एक आधुनिक, मजबूत और विश्वसनीय मार्ग में बदल देती है।
एक्सप्रेसवे का निर्माण कौन करता है?
एक्सप्रेसवे का निर्माण आमतौर पर सरकारी एजेंसियां और ठेकेदार कंपनियां मिलकर करती हैं। भारत में इसका प्रमुख जिम्मेदार नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) होती है, जो एक्सप्रेसवे की योजना बनाना, निर्माण प्रक्रिया की निगरानी करना और रखरखाव का काम संभालती है। इसके अलावा, कुछ राज्यों की राज्य सड़क विकास एजेंसियां (SSDA) भी अपने क्षेत्र में एक्सप्रेसवे निर्माण का कार्य करती हैं। जब योजना पूरी तरह तैयार हो जाती है और डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) मंजूर हो जाती है, तो NHAI या संबंधित एजेंसी निर्माण के लिए ठेकेदार कंपनियों को टेंडर के जरिए चुनती है। ये ठेकेदार प्राइवेट कंपनियां होती हैं जिनके पास सड़क निर्माण का अनुभव और संसाधन होते हैं। ठेकेदार निर्माण का तकनीकी काम-जैसे जमीन की सफाई, आधार बनाना, सड़क की परतें डालना, पुल, फ्लाईओवर बनाना-सब संभालती हैं। इसके अलावा, कई बार सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत भी एक्सप्रेसवे बनते हैं, जहां सरकार और निजी कंपनियां मिलकर निवेश और निर्माण करती हैं। इस मॉडल में निजी कंपनियां निवेश करती हैं और टोल प्लाजा से राजस्व कमाकर अपनी लागत निकालती हैं।
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शिशुपाल कुमार टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल के न्यूज डेस्क में कार्यरत हैं और उन्हें पत्रकारिता में 13 वर्षों का अनुभव है। पटना से ताल्लुक रखने वाले शिशुपा...और देखें

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