सुप्रीम कोर्ट ने असम के गोलाघाट में बुलडोजर एक्शन और बेदखली की कार्रवाई पर लगाई रोक

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असम के गोलाघाट जिले के उरियामघाट और आसपास के गांवों में रहने वाले सैकड़ों परिवारों को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बेदखली और घरों को गिराने की कार्रवाई पर अंतरिम रोक लगा दी। शुक्रवार को ये आदेश कोर्ट ने उन याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दिया जिन्होंने गुवाहाटी हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उनके पूर्वज सात दशक से भी अधिक समय पहले इन गांवों में बसे थे और तब से लगातार यहां रह रहे हैं। उनके पास बिजली कनेक्शन, राशन कार्ड, आधार संख्या और मतदाता सूची में नाम भी दर्ज है। कई परिवारों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान भी स्वीकृत हुए। इसके बावजूद जुलाई 2025 में प्रशासन ने नोटिस जारी कर सात दिन के भीतर घर खाली करने का आदेश दे दिया।सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में दलील दी गई थी कि असम सरकार की कार्रवाई असम वन विनियमन 1891, वन अधिकार अधिनियम 2006 और भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन अधिनियम 2013 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है। उनका तर्क था कि गुवाहाटी हाईकोर्ट ने उन्हें अतिक्रमणकारी करार देकर उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन किया है।
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की की पैरवी सीनियर एडवोकेट चंदर उदय सिंह और रऊफ रहीम ने की। जबकि एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड अदील अहमद के साथ अब्दुर रहमान ने सहयोग किया। अदालत ने अपने अंतरिम आदेश में कहा कि अगली सुनवाई तक किसी भी परिवार का घर उजाड़ा नहीं जाएगा।
याचिकाकर्ताओं की मुख्य मांगें क्या थी?
1. लंबे समय से बसी आबादी की मान्यता को नजरअंदाज किया गया
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वो लोग सात दशक से भी ज़्यादा समय से इन गांवों में बसे हैं। राज्य ने उन्हें राशन कार्ड, आधार, वोटर लिस्ट और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी सुविधाएं दी हैं। इसलिए उन्हें अतिक्रमणकारी न माना जाए।
2. सरकार की कार्रवाई है कई कानूनों का उल्लंघन
गांव वालों के दावे की जांच किए बिना और ग्रामसभा की प्रक्रिया पूरी किए बिना बेदखल करना अवैध है। अगर सरकार किसी कारणवश ये भूमि खाली कराना चाहती है तो पहले मुआवजा देकर किसी नई जगह बसाया जाए।
असम सरकार की किस कार्रवाई का हुआ विरोध?
असम सरकार ने इसी साल जुलाई में नोटिस जारी करके गोलाघाट के उरियामघाट, नेघेरिबिल, बिद्यापुर, राजापुखुरी, जेलाजन आदि गांवों में रहने परिवारों को इलाका खाली करने का आदेश दिया। नोटिस के मुताबिक सात दिन के भीतर घर खाली करने का आदेश दिया गया था। राज्य सरकार का रुख यह था कि ये लोग आरक्षित वन भूमि पर अतिक्रमणकारी हैं और इसलिए इन्हें हटाना ज़रूरी है। नोटिस के बाद प्रशासन ने वन विभाग और पुलिस के साथ लोगों की बेदखल करने का अभियान शुरू किया। इसको चुनौती देते हुए प्रभावित परिवारों ने हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
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