अदाणी स्कूल के छात्र अहान को मिला क्रेस्ट गोल्ड अवार्ड, कलर ब्लाइंड बच्चों के लिए बनाया इनोवेटिव मॉडल

अदाणी इंटरनेशनल स्कूल के छात्र अहान रितेश प्रजापति (फोटो- ANI)
अदाणी इंटरनेशनल स्कूल के 17 वर्षीय छात्र अहान रितेश प्रजापति ने यूके का प्रतिष्ठित क्रेस्ट गोल्ड अवार्ड जीतकर देश और अपने स्कूल का नाम रोशन किया है। उन्हें यह सम्मान ग्लोबल एकेडमिक प्लेटफॉर्म पर उनके अभिनव प्रोजेक्ट के लिए मिला है। अहान ने रंगों की पहचान में कठिनाई (विशेष रूप से लाल और हरे रंग के बीच भेद) झेल रहे बच्चों की मदद के लिए एक मशीन लर्निंग आधारित मॉडल विकसित किया है। यह मॉडल खासतौर पर कलर ब्लाइंड बच्चों के लिए डिजाइन किया गया है, जो किताबों में मौजूद तस्वीरों और नक्शों को समझने में आने वाली दिक्कतों को काफी हद तक कम करता है। अहान का यह प्रयास न केवल तकनीकी दृष्टि से सराहनीय है, बल्कि समाज में समावेशिता बढ़ाने की दिशा में भी एक बड़ा कदम है।
व्यक्तिगत अनुभव से प्रेरणा
अहान ने साझा किया कि बचपन में उन्हें खुद भी रंगों की पहचान में कठिनाई का सामना करना पड़ा था, खासकर लैब प्रयोगों और आर्ट एंड क्राफ्ट क्लासेस के दौरान। वे बताते हैं- “मैं कई बार रंगों को सही से पहचान नहीं पाता था, जिससे सीखने में रुकावट आती थी। धीरे-धीरे मेरे माता-पिता को भी इस समस्या का एहसास हुआ और उन्होंने मेरा साथ दिया।”
स्कूल का समर्थन रहा अहम
17 वर्षीय अहान प्रजापति ने बताया कि उनके स्कूल के निरंतर सहयोग ने उनकी इस यात्रा में अहम भूमिका निभाई। अहान ने कहा कि अदाणी इंटरनेशनल स्कूल की प्रमोटर नम्रता अदाणी ने उनके इस सफर में साथ दिया और उनके प्रोत्साहन ने उन्हें समाज में योगदान देने में मदद की। अहान ने कहा- "उन्होंने मुझे एक मंच दिया।"
शिक्षा को पाठ्यपुस्तकों से आगे बढ़ना चाहिए- नम्रता अदाणी
नम्रता अदाणी का मानना है कि अहान जैसी कहानियां अदाणी इंटरनेशनल स्कूल के व्यापक दृष्टिकोण को दर्शाती हैं कि यह एक ऐसा संस्थान है जो न केवल उपलब्धि हासिल करने वालों, बल्कि बदलाव लाने वालों को भी आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। वह कहती हैं- "शिक्षा को पाठ्यपुस्तकों से आगे बढ़ना चाहिए। इसे ऐसे बच्चों को आकार देना चाहिए जो जीवन को प्रभावित कर सकें।"
अहान करना चाहते हैं अन्य छात्रों की मदद
अहान ने कहा कि अदाणी इंटरनेशनल स्कूल में आने के बाद, वह स्कूल के सहयोग से अपना काम जारी रख पाए, जिससे उन्हें अपने प्रोजेक्ट को "व्यक्तिगत प्रयास के बजाय उनकी पहल के एक हिस्से के रूप में" आगे बढ़ाने का मौका मिला। उन्होंने कहा-"स्कूल की गतिविधियों के एक हिस्से के रूप में, मैंने अपने सहपाठियों की मदद से एक शिविर लगाया, जिन्होंने स्वेच्छा से इसमें भाग लिया और 300 से ज्यादा छात्रों का परीक्षण किया। अगले पांच वर्षों में, मेरा लक्ष्य इस परियोजना को गुजरात और भारत भर के और ज्यादा स्कूलों तक पहुंचाना है। मैं नीतिगत बदलावों की भी वकालत करना चाहता हूं, जैसे कि स्कूलों में कलर ब्लाइंड छात्रों के लिए अनिवार्य प्राथमिक स्वास्थ्य जांच ताकि उनमें शीघ्र जागरूकता सुनिश्चित हो सके, और पाठ्यपुस्तकों में बदलाव, जैसे कि चित्रों को बेहतर बनाकर उन्हें कलर ब्लाइंड छात्रों के लिए अधिक सुलभ बनाना।"
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