भारत की संस्कृति में देवभक्ति और देशभक्ति को अलग नहीं किया जा सकता: मोहन भागवत

आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा आयोजित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग महारुद्र पूजा में शिरकत करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत (PHOTO - ऑर्ट ऑफ लिविंग)
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि भारत की संस्कृति में देवभक्ति और देशभक्ति को अलग नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार, सच्चा भक्त वही है जो राष्ट्र की सेवा करता है, और जो निष्ठा से देश के लिए कार्य करता है, उसके जीवन में ईश्वर की उपासना स्वतः प्रकट होती है।
डॉ. भागवत नागपुर के मानकापुर क्रीड़ा स्टेडियम में आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा आयोजित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग महारुद्र पूजा में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर भी मंच पर उपस्थित रहे।
भारत सनातन परंपरा का प्रतीक
सरसंघचालक ने कहा कि भारत का अस्तित्व इतिहास के आरंभ से भी पहले का है। शिवशंकर को उन्होंने “आदिगुरु” बताते हुए कहा कि आत्मज्ञान के अनगिनत मार्ग हैं, परंतु लक्ष्य एक ही है – सत्य और एकत्व की अनुभूति। मनुष्य की रुचियाँ भिन्न हो सकती हैं, इसलिए साधना के मार्ग अलग-अलग हैं, लेकिन मंज़िल सभी की एक है।
अपनेपन पर टिका है जीवन का सार
उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा तपस्या और आत्मिक साधना में बसती है। जब भीतर छिपे सत्य का साक्षात्कार होता है, तब यह अनुभव होता है कि “मैं और तुम अलग नहीं, हम सभी एक ही हैं।” उन्होंने परिवार और समाज के रिश्तों का उदाहरण देते हुए कहा – “हम बच्चों को केवल इसलिए नहीं पढ़ाते कि वे बड़े होकर हमारी सेवा करें। वे हमारी सेवा करें या न करें, वे हमारे अपने हैं। और जब वे स्नेह और ममता से पले-बढ़े होने का अनुभव करते हैं, तो उनकी सेवा भावना अपने आप प्रकट होती है।”
आज की दुनिया दिशा-विहीन
डॉ. भागवत ने कहा कि वर्तमान विश्व आत्मीय संबंधों से वंचित है। पिछले दो हजार वर्षों से मानवता “बलवान ही जीवित रहेगा, दुर्बल नष्ट होगा” जैसी अधूरी धारणाओं पर चल रही है। उन्होंने कहा – “विज्ञान ने प्रगति दी, भौतिक सुख-सुविधाएँ बढ़ीं, लेकिन मनुष्य का असंतोष अब भी कायम है। विकास के साथ पर्यावरण का ह्रास हो रहा है और समाज संघर्षों से घिरा है। दुनिया आज समाधान ढूँढ रही है, और वह समाधान शिव के मार्ग में निहित है।”
राम, कृष्ण और शिव – भारतीय एकता के ध्रुवतारे
डॉ. भागवत ने कहा कि डॉ. राम मनोहर लोहिया मानते थे कि भगवान राम उत्तर से दक्षिण को जोड़ते हैं और भगवान कृष्ण पूरब से पश्चिम को। परंतु भगवान शिव भारत के कण-कण में विद्यमान हैं। पूजा का अर्थ केवल अनुष्ठान नहीं है, बल्कि पूज्य के गुणों को अपने आचरण में उतारने का प्रयास करना ही सच्ची उपासना है।
सम्मान और आशीर्वाद
कार्यक्रम में डॉ. भागवत का अभिनंदन करते हुए श्री श्री रविशंकर ने उन्हें पुष्पमाला, शाल और नंदी की प्रतिकृति भेंट की। उन्होंने कहा – “डॉ. मोहन भागवत कर्मठ और समर्पित व्यक्तित्व हैं। वे अपना जीवन देश और समाज की सेवा में लगाते हैं। उनके मार्गदर्शन से लाखों-करोड़ों लोग राष्ट्र और धर्म के प्रति जागृत हुए हैं।” उन्होंने आगे कहा कि संघ पिछले सौ वर्षों से भारतीय संस्कृति की रक्षा और समाज-निर्माण में सक्रिय है और आज भी लाखों स्वयंसेवक समाजसेवा में जुटे हैं। “यह प्रवाह और बढ़ना चाहिए, ताकि युवा पीढ़ी भी देवभक्ति और देशभक्ति को जीवन का आधार बना सके।”
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हिमांशु तिवारी एक पत्रकार हैं जिन्हें प्रिंट से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तक का 16 साल का अनुभव है। मैंने अपना करियर क्राइम रिपोर्टर के रूप में शुरू किया था...और देखें

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