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'लिपुलेख दर्रे' के रास्ते भारत-चीन व्यापार पर नेपाल की टिप्पणी की विदेश मंत्रालय ने निंदा की

विदेश मंत्रालय ने बुधवार को लिपुलेख दर्रे के माध्यम से भारत और चीन के बीच व्यापार फिर से शुरू करने पर नेपाल की टिप्पणी की निंदा करते हुए कहा कि इस तरह के दावे अनुचित हैं और ऐतिहासिक तथ्यों और साक्ष्यों पर आधारित नहीं हैं।
Randhir Jaiswal

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल (फोटो:PTI)

भारत और चीन द्वारा लिपुलेख के माध्यम से सीमा व्यापार फिर से शुरू करने पर सहमति जताने के एक दिन बाद नेपाल ने बुधवार को कहा कि यह क्षेत्र उसका अविभाज्य हिस्सा है और इसे उसके आधिकारिक मानचित्र में भी शामिल किया गया है।नेपाली विदेश मंत्रालय ने कहा, 'नेपाल सरकार का स्पष्ट मत है कि महाकाली नदी के पूर्व में स्थित लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी नेपाल के अविभाज्य अंग हैं। इन्हें आधिकारिक तौर पर नेपाली मानचित्र में भी दर्ज किया गया है और संविधान में भी शामिल किया गया है।'

नेपाल सरकार के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि ऐसे दावे 'न तो उचित हैं और न ही ऐतिहासिक तथ्यों तथा साक्ष्यों पर आधारित हैं।'

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, 'लिपुलेख दर्रे के ज़रिए भारत और चीन के बीच सीमा व्यापार 1954 में शुरू हुआ था और दशकों तक जारी रहा है। हाल के वर्षों में कोरोना और अन्य घटनाओं के कारण यह व्यापार बाधित हुआ था। अब दोनों पक्ष इसे फिर से शुरू करने पर सहमत हुए हैं।'

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चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ विदेश मंत्री एस. जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच नयी दिल्ली में व्यापक वार्ता के बाद मंगलवार को जारी एक संयुक्त दस्तावेज में कहा गया कि दोनों पक्ष तीन निर्दिष्ट व्यापार बिंदुओं - लिपुलेख दर्रा, शिपकी ला दर्रा और नाथू ला दर्रा - के माध्यम से सीमा व्यापार को फिर से शुरू करने पर सहमत हुए।

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रवि वैश्य author

रवि वैश्य 'Times Now नवभारत' डिजिटल के 'न्यूज डेस्क' में Assistant Editor के रूप कार्यरत हैं, 'खबरों के संसार' में काम करते हुए करीब 20 साल से ज्यादा ...और देखें

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