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देश

साइकिल चोरी का आरोपी 3 महीने जेल में, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा–जमानत देने में बड़ा दिल दिखाएं मजिस्ट्रेट

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट को यह अधिकार है कि वे किसी भी आरोपी को जमानत दें, चाहे उच्च अदालत ने पहले जमानत याचिका खारिज कर दी हो। कोर्ट ने कहा कि मामूली अपराधों में लंबे समय तक जेल में रखने से न्याय का मकसद ही खत्म हो जाता है। साइकिल और जूते चोरी के मामले में आरोपी को चार महीने जेल में रहने के बाद मिली राहत, कोर्ट ने सिस्टम की नाकामी पर चिंता जताई।

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1. हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: मजिस्ट्रेट को है जमानत देने का अधिकार

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पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि यदि पुलिस जांच में किसी आरोपी को बरी करने की सिफारिश की जाती है या क्लोजर रिपोर्ट दाखिल होती है, तब मजिस्ट्रेट को पूरा अधिकार है कि वे आरोपी को जमानत दें। यह अधिकार मजिस्ट्रेट को तब भी है जब सेशन कोर्ट या हाईकोर्ट पहले ही जमानत याचिका खारिज कर चुके हों। अदालत ने साफ किया कि इस स्थिति में मजिस्ट्रेट को उच्च अदालतों के आदेशों से बंधा हुआ नहीं माना जाएगा।

2. मामूली अपराध में 3 महीने जेल, सिस्टम पर सवाल

यह फैसला उस समय आया जब एक गरीब व्यक्ति को साइकिल और एक जोड़ी जूते चोरी के आरोप में करीब तीन महीने बीस दिन तक जेल में रहना पड़ा। अदालत ने कहा कि यह हैरानी की बात है कि इतने छोटे अपराध में आरोपी को जमानत न देकर इतने लंबे समय तक हिरासत में रखा गया। जज ने टिप्पणी की कि अगर आरोपी ने अपराध कबूल भी कर लिया होता तो उसे इतनी लंबी सजा नहीं मिलती। कोर्ट ने इसे न्याय व्यवस्था की असफलता बताया।

3. पीड़ित की सहमति को दिया जाए महत्व

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी मामले में पीड़ित पक्ष को आरोपी की जमानत पर आपत्ति नहीं है और वह शपथपत्र देकर अपनी सहमति दे रहा है, तो मजिस्ट्रेट को आमतौर पर जमानत दे देनी चाहिए। यहां तक कि अपराध की धारा समझौता योग्य न भी हो, तब भी समझौते की स्थिति को जमानत देते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि पीड़ित और आरोपी के बीच समझौते को नजरअंदाज करना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ होगा।

4. मजिस्ट्रेट के डर और झिझक पर कोर्ट की चिंता

कोर्ट ने इस बात पर गंभीर चिंता जताई कि मजिस्ट्रेट अक्सर जमानत देने से झिझकते हैं क्योंकि उन्हें उच्च अदालतों का सहयोग और भरोसा नहीं मिलता। इससे न्याय का मकसद प्रभावित होता है और छोटे-छोटे मामलों में भी गरीब लोग महीनों जेल में सड़ते रहते हैं। अदालत ने कहा कि मजिस्ट्रेट को स्वतंत्र होकर जमानत देने का अधिकार प्रयोग करना चाहिए, भले ही आरोपी के खिलाफ अन्य मामलों में आपराधिक इतिहास हो। भारतीय कानून का सिद्धांत भी ये कहता है कि जमानत नियम है और जेल अपवाद।

5.हाईकोर्ट के फैसले का होगा व्यापक असर

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के इस आदेश ने साफ कर दिया है कि जमानत के मामलों में मजिस्ट्रेट सिर्फ उच्च अदालतों की ओर न देखें बल्कि अपने अधिकारों का स्वतंत्र प्रयोग करें। यह फैसला उन गरीब और हाशिए पर खड़े लोगों के लिए बड़ी राहत है जो मामूली अपराधों में भी लंबी जेल की सजा भुगतते हैं। अदालत ने यह भी संदेश दिया कि न्याय केवल कठोर दंड देने से नहीं बल्कि मानवीय दृष्टिकोण से भी पूरा होता है।

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Gaurav Srivastav author

टीवी न्यूज रिपोर्टिंग में 10 साल पत्रकारिता का अनुभव है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट से लेकर कानूनी दांव पे...और देखें

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