अध्यात्म

कल बनेगा त्रिपुष्कर और रवि योग का अद्भुत संयोग, इन उपायों से दूर होगा शनिदेव का प्रकोप

13 सितंबर 2025 को शनिवार को एक अद्भुत संयोग बन रहा है। वैसे इस दिन आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि है। इस दिन दो शुभ योगों का संयोग बन रहा है। जानें इस शुभ संयोग का महत्व और कैसे करें शनिदेव को प्रसन्न।
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13 सितंबर शनिवार के शुभ संयोग (Pic: Canva)

13 सितंबर शनिवार के शुभ संयोग: आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि शनिवार को है। इस दिन सूर्य सिंह राशि और चंद्रमा वृषभ राशि में रहेंगे। इस दिन त्रिपुष्कर और रवि योग का अद्भुत संयोग बन रहा है।

दृक पंचांग के अनुसार, इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 52 मिनट से शुरू होकर दोपहर के 12 बजकर 42 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय सुबह के 9 बजकर 11 मिनट से शुरू होकर 10 बजकर 44 मिनट तक रहेगा।

रवि योग ज्योतिष में एक शुभ योग माना गया है। यह तब बनता है, जब चंद्रमा का नक्षत्र सूर्य के नक्षत्र से चौथे, छठे, नौवें, दसवें और तेरहवें स्थान पर होता है। इस दिन निवेश, यात्रा, शिक्षा या व्यवसाय से संबंधित काम की शुरुआत करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। वहीं, इस दिन 'त्रिपुष्कर योग' भी बन रहा है। यह योग तब बनता है, जब रविवार, मंगलवार या शनिवार के दिन द्वितीया, सप्तमी, द्वादशी में से कोई एक तिथि हो।

शनिदेव को कैसे करें प्रसन्न

शनिवार का दिन होने के कारण शनि देव की पूजा का विशेष महत्व है। कई लोग शनिदेव को भय की दृष्टि से भी देखते हैं, लेकिन यह धारणा गलत है। ज्योतिष शास्त्र में मान्यता है कि शनि देव व्यक्ति को संघर्ष देने के साथ-साथ उन्हें सोने की तरह चमका भी देते हैं।

शनि देव व्यक्ति को उनके वर्तमान जीवन में ही उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। जब शनि की साढ़े साती, ढैय्या या महादशा चलती है, तो व्यक्ति को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे आर्थिक संकट, नौकरी में समस्या, मान-सम्मान में कमी और परिवार में कलह। ऐसे में शनिवार का व्रत शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या में आने वाली समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है। यह व्रत किसी भी शुक्ल पक्ष के शनिवार से शुरू किया जा सकता है।

शनिवार का व्रत कैसे करते हैं

मान्यताओं के अनुसार, 7 शनिवार व्रत रखने से शनिदेव के प्रकोप से मुक्ति मिलती है और हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होने लगती है।

शनि देव को प्रसन्न करने के लिए इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें। इसके बाद शनिदेव की प्रतिमा को जल से स्नान कराएं, उन्हें गुड़, काले वस्त्र, काले तिल, काली उड़द की दाल और सरसों का तेल अर्पित करें और उनके सामने सरसों के तेल का दीपक भी जलाएं। रोली, फूल आदि चढ़ाने के बाद जातक को शनि स्त्रोत का पाठ करना चाहिए, साथ ही सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का भी पाठ करना चाहिए। इसके साथ ही राजा दशरथ की रचना 'शनि स्तोत्र' का पाठ भी करना चाहिए।

पूजन के बाद 'शं शनैश्चराय नम:' और 'सूर्य पुत्राय नम:' और 'छायापुत्राय नम:' का जाप करना चाहिए।

मान्यता है कि पीपल के पेड़ पर शनिदेव का वास होता है। हर शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना और छाया दान करना (सरसों के तेल का दान) बेहद शुभ माना जाता है और इससे नकारात्मकता भी दूर होती है और शनिदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

इनपुट : आईएएनएस

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मेधा चावला author

टाइम्स नाउ नवभारत में मेधा चावला सीनियर एसोसिएट एडिटर की पोस्ट पर हैं और पिछले सात साल से इस प्रभावी न्यूज प्लैटफॉर्म पर फीचर टीम को लीड करने की जिम्म...और देखें

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