IPL Trade Rule: क्यों होती है आईपीएल में खिलाड़ियों की ट्रेडिंग, समझें IPL ट्रेड की ABCD

संजू सैमसन (साभार-X IPL)
- क्या होता है आईपीएल में ट्रेड?
- कब से कब तक होती है खिलाड़ियों की ट्रेडिंग
- 2009 में धवन के तौर पर हुई थी पहली ट्रेडिंग
IPL Trade Rule: आईपीएल 2026 से पहले जिस नाम की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, वह नाम विकेटकीपर बल्लेबाज संजू सैमसन का है। 2013 से लगातार राजस्थान रॉयल्स का हिस्सा रहे संजू सैमसन, इस टीम का साथ छोड़ने वाले हैं। इस बात की पूरी संभावना है कि उन्हें मिनी ऑक्शन से पहले ट्रेड कर लिया जाएगा। ट्रेड के लिए दो पक्षों का होना जरूरी है, ऐसे में सवाल उठता है कि संजू का खरीददार कौन सी टीम होगी। चर्चा है कि चेन्नई सुपर किंग्स की टीम संजू को टीम में शामिल कर सकती है। आईपीएल 2026 में संजू राजस्थान से खेलेंगे या फिर येलो जर्सी में नजर आएंगे, ये तो आने वाले वक्त में पता चल ही जाएगा, लेकिन पहले यह जानना जरूरी हो जाता है कि ट्रेड है क्या और आईपीएल में इसे कैसे अंजाम दिया जाता है।
IPL में ट्रेड क्या है और यह कैसे होता है?
आईपीएल में ट्रेड की बात करें तो जब कोई खिलाड़ी ट्रेडिंग विंडो के दौरान टीम की अदला-बदली करता है तो उसे ट्रेड कहते हैं। यह पूरी तरह से उस फ्रेंचाइजी के मन पर होता है, जिसके साथ वह खिलाड़ी जुड़ा है। उदाहरण के तौर पर संजू सैमसन के ट्रेड का अधिकार पूरी तरह से राजस्थान रॉयल्स की सहमति पर निर्भर करता है। दरअसल जब किसी खिलाड़ी को ऑक्शन में खरीदा जाता है या फिर रिटेन किया जाता है तो वह खिलाड़ी उस टीम के साथ 3 साल के लिए अनुबंधित हो जाता है। संजू सैमसन की बात करें तो अगर कोई टीम उन्हें ट्रेड करना चाहती है तो उसे वह रकम देनी होगी, जिस पर राजस्थान ने उन्हें रिटेन किया था। राजस्थान ने संजू को 18 करोड़ रुपये में रिटेन किया था और अब उन्हें ट्रेड करने के लिए 18 करोड़ रुपये देने होंगे। ट्रेड की प्रक्रिया पूरी होते ही खरीदने वाली टीम के पर्स से 18 करोड़ कट जाएंगे और बेचने वाली टीम के पर्स में 18 करोड़ जुड़ जाएंगे।
कब से कब तक होती है ट्रेडिंग विंडो
ट्रेडिंग विंडो उस कार्यकाल को कहा जाता है जिसके भीतर कोई भी टीम किसी खिलाड़ी को खरीद या बेच सकती है। आईपीएल के नियमों के अनुसार ट्रेडिंग विंडो आईपीएल सीज़न खत्म होने के एक महीने बाद शुरू होती है जो ऑक्शन की तारीख से एक हफ्ता पहले तक खुली रहती है। यह विडों ऑक्शन के बाद दोबारा खुलती है, जो अगले सीज़न आईपीएल के शुरू होने से एक महीने पहले तक जारी रहती है।
टीम क्यों करती है ट्रेड?
कोई टीम ऑक्शन से पहले ट्रेड अपनी खास रणनीति के तहत करती है। ऑक्शन की तुलना में ट्रेड में फ्रेंचाइजियों को कम कीमत चुकानी पड़ती है। साल 2024 में इसी रणनीति के तहत मुंबई ने कैमरन ग्रीन को आरसीबी में जाने दिया और उस पैसे से हार्दिक पांड्या की वापसी की राह आसान कर दी। कभी-कभी टीम अपनी जरुरत को देखते हुए प्लेयर-टू प्लेयर डील करती है। 2019 में सनराइजर्स हैदराबाज ने शिखर धवन को ट्रेड कर 3 खिलाड़ियों को शामिल कर लिया था।
कैसे होता है आईपीएल में ट्रेड
आईपीएल में ट्रेड को दो तरह से अंजाम दिया जाता है। कोई फ्रेंचाइजी या तो जिस खिलाड़ी को ट्रेड कर रही है, उसके बदले पैसे लेती है, जिसे वन-वे ट्रेड कहा जाता है। टू-वे ट्रेड में खिलाड़ी के बदले खिलाड़ी की अदला-बदली होती है। लेकिन अगर खिलाड़ी की कीमत में अंतर होता है तो उस राशि को खरीदने वाली टीम बेचने वाली टीम को भुगतान करती है। जिस खिलाड़ी को ट्रेड किया जाता है, उस खिलाड़ी की कीमत उस बेचने वाले फ्रेंचाइजी के पर्स में जुड़ जाता है और खरीदने वाली टीम के पर्स में से उतना ही पैसा काट लिया जाता है।
2009 में पहली बार हुआ था ट्रेड
ट्रेड की बात करें तो आईपीएल 2009 में पहली बार फैंस को इसके बारे में पता चला जब मुंबई इंडियंस ने दिल्ली डेयरडेविल्स से शिखर धवन को ट्रेड किया था। यह एक टू-वे ट्रेड था जिसमें धवन को उन्होंने आशीष नेहरा के बदले ट्रेड किया था। आईपीएल इतिहास के कुछ बड़े और चर्चित ट्रेड की बात करें तो सबसे ऊपर हार्दिक पांड्या का नाम आता है, जिन्हें मुंबई इंडियंस ने साल 2024 में ट्रेड किया था। इसके अलावा 2009 में शिखर धवन, 2016 में केएल राहुल और 2024 में कैमरन ग्रीन के ट्रेड ने खूब सुर्खियां बटोरी थी।
ट्रांसफर फीस की क्या भूमिका?
ट्रांसफर फीस वह राशि होती है जो एक फ्रेंचाइज़ी किसी खिलाड़ी के ट्रेड के दौरान दूसरी फ्रेंचाइज़ी को देती है, लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि यह खिलाड़ी की कीमत के अलावा दी जाने वाली राशि है। यह राशि फ्रेंचाइज़ी के ऑक्शन पर्स को प्रभावित नहीं करती। यह ट्रांसफर फीस दोनों फ्रेंचाइज़ियों के बीच आपसी सहमति से तय की जाती है, और ट्रेड से पहले इसका निर्णय लिया जाता है। ट्रासफर फीस की आधी राशि खिलाड़ी को भी दी जाती है।
नियम का पालन न होने पर लग सकता है बैन
ट्रेड, अगर नियम के तहत न किया जाए तो खिलाड़ी के खिलाफ कड़ा एक्शन भी लिया जाता है। साल 2010 में रवींद्र जडेजा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा था। 2010 में जडेजा ने राजस्थान रॉयल्स के साथ अपना रिन्यूअल कॉन्ट्रैक्ट साइन नहीं किया था और मुंबई इंडियंस के साथ नया कॉन्ट्रैक्ट करने की कोशिश की थी। इस कारण रवींद्र जडेजा को एक सीज़न के लिए बैन भी कर दिया था। आईपीएल ने ट्रेडिंग नियमों का उल्लंघन करने का हवाला भी दिया था।
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