World Boxing Championships 2025: वर्ल्ड चैंपियन बनीं जैसमीन लंबोरिया और मीनाक्षी हुड्डा, वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भारत ने जीते चार पदक

जैसमीन लंबोरिया और मीनाक्षी हुड्डा(फोटो क्रेडिट bfi_official Instagram)
लिवरपूल: भारतीय मुक्केबाजों जैसमीन लंबोरिया (57 किग्रा) और मीनाक्षी हुड्डा (48 किग्रा) ने अपना नाम इतिहास में दर्ज कराते हुए विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में कड़े मुकाबलों में अपने-अपने वर्ग में खिताब जीते जबकि भारत ने विदेशी सरजमीं पर महिला वर्ग में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए चार पदक अपने नाम किए। जैसमीन ने पेरिस ओलंपिक की रजत पदक विजेता पोलैंड की जूलिया जेरेमेटा को हराकर फीदरवेट वर्ग में चैम्पियन बन गई। पूरे टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन करने वाली जैसमीन ने 57 किग्रा के फाइनल में शनिवार को देर रात 4-1 (30-27, 29-28, 30-27, 28-29, 29-28) से जीत दर्ज की।
जैसमीन ने पीटीआई से कहा,'मैं जो महसूस कर रही हूं उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकती। मैं पिछली दो विश्व चैंपियनशिप में क्वार्टर फाइनल में हार गई थी लेकिन विश्व कप जीत से मेरा हौसला बढ़ा और मैंने तय किया कि मुझे एकतरफा मैच जीतने हैं। मैंने बस अपनी रणनीति और खेल पर ध्यान केंद्रित किया।'
मीनाक्षी हुड्डा बनीं 48 किग्रा भारवर्ग में वर्ल्ड चैंपियन
पदार्पण कर रही मीनाक्षी ने रविवार को जैसमीन की उपलब्धि को दोहराते हुए पेरिस ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता कजाखस्तान की नाजिम काइजेबे को 48 किग्रा वर्ग के फाइनल में 4-1 से हराकर जुलाई में विश्व कप में मिली हार का बदला चुकता किया। नुपूर शेरोन (80 प्लस किलो) और पूजा रानी (80 किलो) को गैर ओलंपिक भारवर्ग में क्रमश: रजत और कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा । भारत ने प्रतियोगिता में चार पदक जीते जो विदेशी सरजमीं पर उसका अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। इस जीत के साथ जैसमीन और मीनाक्षी विश्व चैम्पियन बनने वाली भारतीय मुक्केबाजों की सूची में शामिल हो गई हैं। इससे पहले छह बार की चैम्पियन एम सी मैरीकॉम (2002, 2005, 2006, 2008, 2010 और 2018), दो बार की विजेता निख़त जरीन (2022 और 2023), सरिता देवी (2006), जेनी आरएल (2006), लेखा केसी (2006), नीतू गंघास (2023), लवलीना बोरगोहेन (2023) और स्वीटी बूरा (2023) यह खिताब जीत चुकी हैं।
जैसमीन ने किया फाइनल में शानदार प्रदर्शन
तीसरी बार विश्व चैंपियनशिप में भाग ले रही 24 वर्षीय जैसमीन ने मुकाबले में लगातार अच्छा प्रदर्शन किया। शुरू में दोनों मुक्केबाज़ एक-दूसरे को परख रही थीं लेकिन रेफरी के उकसावे पर जेरेमेटा ने पहला वार किया। ओलंपिक फ़ाइनल में लिन यू-टिंग से हारने वाली पोलैंड की यह मुक्केबाज़ तेज़ और सटीक थी और रक्षात्मक रणनीति का इस्तेमाल करते हुए तेज़ी से अंदर-बाहर हो रही थी। उन्होंने पहला राउंड 3-2 से जीत लिया। लेकिन दूसरे राउंड में भारतीय खिलाड़ी ने जोरदार वापसी की। जैसमीन ने मुकाबले पर नियंत्रण बनाया तथा आक्रमण और रक्षण के बीच शानदार समन्वय स्थापित किया जिससे सभी जज उनके पक्ष में हो गए। जब अंतिम फैसला सुनाया गया, तो आमतौर पर शांत रहने वाली जैसमीन ने हल्की सी चीख़ मारी और फिर हाथ उठाकर अपनी निराश प्रतिद्वंद्वी को शालीनता से गले लगा लिया। पदक समारोह में, जब पूरे स्टेडियम में भारतीय राष्ट्रगान गूंज रहा था, तो उनकी आंखें चमक उठीं। उनका यह पदक भारत को ओलंपिक भार वर्ग में मिला एकमात्र पदक है।
मीनाक्षी ने उठाया अपनी कदकाठी का फायदा
फाइनल में मीनाक्षी ने अपनी शारीरिक क्षमता का पूरा फायदा उठाया। उन्होंने अपनी लंबी पहुंच का इस्तेमाल करते हुए काइजेबे पर तीखे प्रहार किए और विश्व चैंपियनशिप में कई पदक जीतने वाली इस मुक्केबाज को लगातार दबाव में रखा। चौबीस साल की मीनाक्षी बैकफुट पर सहज दिखीं और उन्होंने सीधे मुक्के जड़े जबकि कजाखस्तान की 31 वर्षीय अनुभवी मुक्केबाज पूरी आक्रामकता के साथ आगे बढ़ रही थीं। पहला राउंड गंवाने के बाद काइजेबे ने दूसरे राउंड में आक्रामक रुख अपनाया। उन्होंने भारतीय मुक्केबाज के शरीर पर वार किए और 3-2 से राउंड जीत लिया। मीनाक्षी ने तुरंत पलटवार किया। मौके की जरूरत को देखते हुए उन्होंने तीसरे राउंड में अधिक आक्रामकता दिखाई और पूरे दबदबे के साथ विरोधी मुक्केबाज पर मुक्के बरसाए और जीत दर्ज की।
नुपूर को करना पड़ा सिल्वर से संतोष
एक अन्य फाइनल में नुपूर को पोलैंड की तकनीकी रूप से कुशल अगाता काज्मार्स्का से 2-3 से हार का सामना करना पड़ा, जिसके बाद उन्हें रजत पदक मिला। नुपूर अपने लंबे कद के बावजूद मुकाबले में खुद को हावी नहीं कर पाईं। उन्होंने शानदार शुरुआत की और मुक्कों की झड़ी लगा दी, लेकिन काज़्मार्स्का ने लगातार आक्रामकता से जवाब दिया और ऐसे वार किए कि भारतीय खिलाड़ी निढाल हो गई। जैसे-जैसे मुकाबला आगे बढ़ा, नुपूर मुक्के मारने में हिचकिचाने लगीं, जबकि पोलैंड की खिलाड़ी लगातार आक्रमण करती रही। निर्णायक क्षण अंतिम राउंड में आया जब अगाता ने एक ज़बरदस्त अपरकट लगाया जो मुकाबला 3-2 से उनके पक्ष में करने और उनके पहले विश्व ख़िताब को सुनिश्चित करने के लिए काफ़ी था।
इससे पहले सेमीफाइनल में पूजा को स्थानीय खिलाड़ी एमिली एस्क्विथ के हाथों 1-4 के विभाजित फैसले से हारकर कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा था। पूजा ने राउंड के बाद अपने नपे-तुले खेल से बढ़त बना ली। लेकिन एस्क्विथ ने तेज़ी से अपने खेल की रणनीति में बदलाव करते हुए 34 वर्षीय पूजा की लय को बेअसर कर दिया।
(भाषा)
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