पुनरीक्षण कराने वाले EC के इस फैसले के खिलाफ बिहार की विपक्षी पार्टियां सुप्रीम कोर्ट तो पहुंची ही हैं। साथ ही टीएमसी ने भी ईसी के इस फैसले को रद्द करने की गुहार लगाई है। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने अदालत से चुनाव आयोग के आदेश को तत्काल रद्द करने की मांग की है। मोइत्रा ने कहा है कि कोर्ट यह सुनिश्चित करे कि बंगाल अथवा किसी अन्य राज्य के मामले में ऐसा निर्देश न दिया जाए।
Special Intensive Revision : बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन कराए जाने वाले निर्वाचन आयोग के फैसले पर बवाल मचा हुआ है। मामला सुप्रीम तक पहुंच गया है। राजद, कांग्रेस सहित विपक्षी दल निर्वाचन आयोग की मंशा पर सवाल उठाते हुए कई तरह से सवाल पूछ रहे हैं। इसे 'असंवैधानिक' और 'मनमाना' बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी 10 जुलाई को सुनवाई करते हुए निर्वाचन आयोग से पूछा कि बिहार में चुनाव जब इतना करीब है तो उसने इसकी प्रक्रिया इतनी देरी से क्यों शुरू की। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि EC को मतदाता सूची का पुनरीक्षण कराने का अधिकार है, और वह इसे करा सकता है। जाहिर है कि कोर्ट ने भी चुनाव से ठीक पहले इसे कराने पर सवाल किए हैं।
बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण का विरोध कर रही टीएमसी।
टीएमसी को लगता है बिहार मात्र एक 'प्रयोग' है
पुनरीक्षण कराने वाले EC के इस फैसले के खिलाफ बिहार की विपक्षी पार्टियां सुप्रीम कोर्ट तो पहुंची ही हैं। साथ ही टीएमसी ने भी EC के इस फैसले को रद्द करने की गुहार लगाई है। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने अदालत से चुनाव आयोग के आदेश को तत्काल रद्द करने की मांग की है। मोइत्रा ने कहा है कि कोर्ट यह सुनिश्चित करे कि बंगाल अथवा किसी अन्य राज्य के मामले में ऐसा निर्देश न दिया जाए। टीएमसी को लगता है कि बिहार मात्र एक 'प्रयोग' है असली 'खेला' बंगाल में होने वाला है। ममता बनर्जी को लगता है कि बिहार को आधार बनाकर भाजपा चुनाव आयोग के जरिए बड़ी संख्या में वोटरों को मतदाता सूची से बाहर कर सकती है।
ममता ने चुनाव आयोग पर भाजपा की कठपुतली होने का गंभीर आरोप लगाया है। उसने पूछा कि है कि एसआईआर के जरिए क्या वह एनआरसी लागू कर रही है। वहीं टीएमसी के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने का कहना है कि भाजपा ने बंगाल में एक आतंरिक सर्वे कराया है और इस सर्वे में उसे 46-49 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है। इसके बाद भगवा पार्टी ने बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण कराने का फैसला किया। बंगाल में एसआईआर यदि होता है तो इसका लाभ भाजपा को मिलेगा, इससे भाजपा नेता भी इंकार नहीं कर रहे हैं।
भाजपा का दावा-बंगाल में हैं अवैध बांग्लादेशी
खासकर, इस दावे के बाद कि बंगाल में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं और टीएमसी अपने वोट बैंक के लिए इन्हें राजनीतिक संरक्षण देती आई है। भाजपा का आरोप है कि इन अवैध घुसपैठियों के पास आधार और राशन कार्ड है। चूंकि चुनाव आयोग वैध दस्तावेज के रूप में आधार और राशन कार्ड स्वीकार नहीं कर रहा है, ऐसे में बोगस, फर्जी, अवैध और अपात्र मतदाताओं का मतदाता सूची से बाहर हो जाने का खतरा बना रहेगा। रिपोर्टों में एक्सपर्ट के हवाले से कहा गया है कि भाजपा ने बिहार को एक 'पायलट प्रोजेक्ट' के रूप में चुना है। एसआईआर का ज्यादा असरदार रूप बंगाल में देखने को मिल सकता है।
बंगाल में SIR कराने की मांग कर चुके हैं सुवेंदु
बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने रविवार को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण कार्य का स्वागत करते हुए केंद्रीय चुनाव आयोग से बंगाल में भी यह कराने की मांग की। भाजपा नेता ने कहा कि बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का कार्य शुरू किया जाना एक बहुत अच्छा कदम है और इससे पारदर्शिता आएगी। बिहार इसलिए भी अहम है क्योंकि एसआईआर को लेकर केंद्र और बिहार सरकार दोनों ECआई की इस प्रक्रिया को पूरी तरह से निष्पक्ष एवं पारदर्शी बता सकते हैं।
बिहार में लोगों को देने होंगे ये दस्तावेज
गत 24 जून को चुनाव आयोग ने कहा कि बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण किया जाएगा। जिन लोगों के नाम सूची में हैं, उन्हें विशिष्ट दस्तावेज दिखाने होंगे। इस मामले में आधार कार्ड या राशन कार्ड जैसे आसानी से उपलब्ध दस्तावेजों पर विचार नहीं किया जाएगा। चुनाव आयोग ने वैध दस्तावेजों की सूची भी दी है। मतदाता सूची में अपना नाम शामिल कराने के लिए लोगों को केंद्र, राज्य सरकार एवं सार्वजनिक उपक्रमों में कार्यरत कर्मियों के पहचान पत्र, पेंशन भुगतान आदेश, एक जुलाई 1987 के पूर्व सरकारी, स्थानीय प्राधिकार, बैंक, पोस्टऑफिस, एलआEC एवं पब्लिक सेक्टर उपक्रमों से जारी आईकार्ड, दस्तावेज, सक्षम प्राधिकार से जारी जन्म प्रमाणपत्र, मान्यता प्राप्त बोर्ड, विश्वविद्यालय से निर्गत मैट्रिक व अन्य शैक्षणिक प्रमाणपत्र, स्थायी आवासीय प्रमाणपत्र, वन अधिकार प्रमाणपत्र, सक्षम प्राधिकार द्वारा निर्गत ओबीसी/एससी/एसटी जाति प्रमाणपत्र, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (जहां उपलब्ध हो), राज्य/स्थानीय प्राधिकार द्वारा तैयार पारिवारिक रजिस्टर, सरकार की कोई भूमि/मकान आवंटन प्रमाणपत्र दिखाना होगा।
बिहार में बड़ी संख्या में लोग भूमिहीन
विपक्ष की एक बड़ी आपत्ति इन दस्तावेजों को लेकर है। राजद, कांग्रेस जैसे दलों का कहना है कि राज्य के करोड़ों लोग प्रवासी हैं जो बाहरी राज्यों में काम करते हैं और चुनाव के समय वोट डालने के लिए आते हैं। इनमें बहुतों के पास आधार और राशन कार्ड छोड़कर अन्य दस्तावेज नहीं हैं। बिहार के ग्रामीण इलाकों में भूमिहीनों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। ऐसे में इनके पास जमीन से जुड़े कागजात नहीं होंगे। दूसरा स्कूल एवं शैक्षिक प्रमाणपत्र बनवाने में बहुत ज्यादा समय लग जाता है। 30 दिन के भीतर ये दस्तावेज कैसे बन पाएंगे, यह एक बड़ा सवाल है। विपक्ष की अपनी दलीलें और तर्क हैं जबकि सरकार और चुनाव आयोग की अपनी। अब देखना है कि सुप्रीम कोर्ट से इस विवाद का क्या रास्ता निकलता है। कोर्ट ने हालांकि कहा है कि उसे दिक्कत प्रक्रिया से नहीं बल्कि चुने गए समय से है।