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History Of Piggy Banks: गोल गुल्लक को क्यों मिला सुअर का आकार, कैसे इतने पॉपुलर हो गए पिगी बैंक्स, क्या सच में है Pigs का मनी कनेक्शन

Explained History Of Piggy Banks: पहले के पारंपरिक गुल्लक या पिगी बैंक्स में सिर्फ सिक्के डालने की व्यवस्था होती थी। लेकिन अब ऐसे पिगी बैंक्स आ चुके हैं जिनमें आप सिक्के के साथ ही कागज के नोट भी जमा कर सकते हैं।
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Explained Story Of Piggy Banks or Gullak

History Of Piggy Banks: दुनिया में सबसे जरूरी चीज पैसा बताया गया है। इंसान पैदा होता है। पढ़ता लिखता है। पैसे कमाता है। आमदनी के हिसाब से अपनी जिंदगी जीता है और फिर इस दुनिया से रुखसत हो जाता है। भारत समेत दुनिया भर के अधिकतर देशों में बच्चे जब छोटे होते हैं तभी से उन्हें पैसे बचाने के बारे में सिखाया जाता है। तभी आपको घरों में गुल्लक या पिगी बैंक्स नजर आते होंगे। इन पिगी बैंक्स में पैसे इकट्ठा किये जाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सेविंग्स के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले इन गुल्लकों को पिगी बैंक क्यों कहा जाता है। आपको इस आर्टिकल में पिगी बैंक से जुड़े सारे सवालों के जवाब मिलेंगे।

गुल्लक का इतिहास

जाने माने इतिहासकार, प्रोफेसर और लेखक चार्ल्स पनाती ने 1989 में छपी अपनी किताब The Extraordinary Origins of Everyday Things में बताया है कि 15वीं सदी में मध्यकालीन युग में धातु बहुत ज्यादा सुलभ नहीं थे। तब ना तो धातु के बर्तनों का चलन था और ना ही तकनीक इतनी मजबूत थी कि धातु का बहुत ज्यादा घरेलू इस्तेमाल हो सके। उस समय काल में मिट्टी के बर्तनों का चलन था। ये बर्तन खास तरह की मिट्टी से बनते थे जिन्हें Pygg (पग) क्ले कहा जाता था। तब ना तो बैंक थे और ना ही तिजोरी, इस कारण लोग अपने पैसे इन्हीं Pygg क्ले से बने जार में रखा करते थे। इसे Pygg पॉट भी कहा जाता था। इन जार्स के मुंह चौड़े होते थे, जिन्हें कपड़ों से बांध कर रखा जाता था। धीरे-धीरे इन जारों ने गुल्लक की शक्ल ली। हालांकि ये गुल्लक सिर्फ सिक्के रखने के काम आते थे। मिट्टी के गुल्लक गोल आकार के होते थे जिसमें सिर्फ उतना ही बड़ा छेद होता था कि सिक्के अंदर जा सके। गुल्लक से सिक्के तभी निकाले जाते थे जब वह भर जाया करता था।

मिट्टी के गुल्लक कैसे कहलाए पिगी बैंक

ब्रिटेन के पैरागॉन बैंक के ब्लॉग के मुताबिक, अंग्रेजी भाषा के शुरुआत में Y का प्रनंसिएशन U की तरह होता था। मतलब कि Pygg को पग कहा जाता था। बाद के सालों में Y को I की तरह इस्तेमाल किया जाने लगा। Pygg और जानवर Pig का उच्चारण एक सा हो गया। इस तरह पग पॉट समय के साथ पिग पॉट कहलाने लगे। आने वाले वर्षों में लोग भूल गए कि पग नाम की भी कोई चीज थी। फिर आई उन्नीसवीं सदी। अंग्रेजों का लगभग पूरी दुनिया पर राज हुआ। उसी दौर में जब अंग्रेजी कुम्हारों को Piggy Pot या Bank बनाने का ऑर्डर मिला तो उन्होंने सूअर के आकार के गुल्लक बना दिए। गलतफहमी में बने सूअर के आकार के ये गुल्लक काफी पसंद किये गए। देखते-देखते मिट्टी के इन गुल्लकों का नाम हमेशा के लिए पिग्गी बैंक ही पड़ गया।

पिग्गी बैंक का समाजशास्त्र

मानव सभ्यता के शुरुआत से ही जानवर उनके लिए धन और भोजन का प्रमुख स्रोत रहे हैं। गाय, भैंस और बकरी जैसे जानवर आज भी कई लोगों के रोजगार का साधन हैं। तमाम जानवर संपन्नता के प्रतीक हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के रिसर्च स्कॉलर इंद्र बहादुर यादव ने बताया कि इस्लामिक देशों को छोड़ दिया जाए तो सूअर को भी संपन्नता के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है। बहुत से लोग सूअर पालते हैं। उसी से उनका घर चलता है। सूअर महंगे दामों पर बिकते हैं क्योंकि मार्केट में उनकी बहुत डिमांड है। सूअरों के साथ जो सबसे अच्छी बात होती है वो ये है कि उनके खाने पीने पर मालिक को नाम मात्र खर्च करना पड़ता है। दरअसल ये सूअर दिनभर घूमते हैं। मल और गंदगी खाते हैं। फेंका हुआ खाना खाते हैं। नाले और सीवर जैसी जगह पर अपना पेट भरते हैं और फिर अपने मालिक के पास चले आते हैं। इस प्रकार सुअर रखने वाला व्यक्ति बिना किसी लागत के सुअर पालकर लाभ कमा लेता है यानि कि शत प्रतिशत बचत। बचत के इसी गुण के कारण भी लोग गुल्लक के लिए पिग्गी बैंक नाम काफी पॉपुलर हुआ।

कितने तरह के होते हैं पिगी बैंक्स

इंटरनेट पर खंगालेंगे तो आपको कई तरह के पिगी बैंक्स की जानकारी मिलेगी। ऐसा नहीं है कि सिर्फ सुअर के आकार में मिट्टी के पिगी बैंक्स ही मार्केट में हैं। इसमें भी काफी वैरायटी है। आपको अलग-अलग आकार और मैटेरियल में पिगी बैंक्स मिल जाएंगे। इनमें प्लास्टिक, टिन, लेदर,टेराकॉट,मार्बल और लकड़ी के पिगी बैंक्स शामिल हैं।

मार्केट में 20 रुपये से 8 हजार तक के पिगी बैंक्स मौजूद

पहले के पारंपरिक गुल्लक या पिगी बैंक्स में सिर्फ सिक्के डालने की व्यवस्था होती थी। लेकिन अब ऐसे पिगी बैंक्स आ चुके हैं जिनमें आप सिक्के के साथ ही कागज के नोट भी जमा कर सकते हैं। बात इन पिगी बैंक्स के कीमत की करें तो जहां मिट्टी के गुल्लक आज भी 15-20 रुपए में मिल जाते हैं वहीं फैंसी पिगी बैंक्स की कीमत 300 से 1500 रुपए तक में ई कॉमर्स वेबसाइट्स पर उपलब्ध हैं। वयस्कों के लिए भी खास तौर पर पिगी बैंक्स आते हैं। ये काफी महंगे होते हैं। इनके लिए आपको 3 हजार से 8000 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते हैं।

वैसे समय के साथ गुल्लक, पिगी बैंक या मनी बैंक का कॉन्सेप्ट फूला फला है। बच्चों को लुभाने के लिए पिगी बैंक्स अब उनके पसंदीदा कार्टून करैक्टर्स के प्रिंट्स में भी उपलब्ध हैं। डिज्नी करैक्टर्स में प्रिंसेस, फ्रोजन की एल्सा और एना, छोटा भीम और इसके किरदार, कोकोमेलन चैनल के किरदार आदि की खूब डिमांड है। हालांकि पेपा पिग (Peppa Pig) की पॉपुलैरिटी इन फील्ड में सबसे ज्यादा है।

भारत में कैसे पिगी बैंक्स ज्यादा पॉपुलर

भारत में शुरू से ही मिट्टी के गुल्लक ही प्रचलन में रहे हैं। आज भी ज्यादातर जगहों पर मिट्टी के पारंपरिक गुल्लक ही दिखते हैं। हालांकि ये चलन छोटे कस्बों और गांवों में ज्यादा पॉपुलर है। बड़े शहरों में मिट्टी के गुल्लक ना के बराबर दिखते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि शहरों में गुल्लक नहीं होते। शहरो के बच्चे प्लास्टिक या टिन के गुल्लक ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। इन गुल्लकों की खास बात ये है कि पूरा भर जाने के बाद इन्हें तोड़ना नहीं पड़ता। चीनी मिट्टी के पिगी बैंक जो देखने में सुअर की तरह हो उसका भी इस्तेमाल होता है लेकिन बहुत ज्यादा नहीं।

भारत में पिगी बैंक्स क्यों कहलाए गुल्लक

भारत में शुरुआत से ही मिट्टी के बर्तनों का चलन रहा है। फिर चाहे वह खाना बनाने के लिए मिट्टी हांडी हो या फिर पानी रखने के लिए मिट्टी की सुराही। पैसे रखने के लिए भी मिट्टी के वैसे ही पात्र बनाए जाते थे जैसा मध्य युग में बनता था। गोल होने के कारण पैसे रखने वाले मिट्टी के पात्र गोलक कहलाए। समय के साथ गोलक शब्द कब गुल्लक बन गया इसका पता ही नहीं चला।

बाजार में बचत का पर्याय बना पिगी बैंक

भारत में पिगी बैंक्स एक तरह से बचत औऱ निवेश का पर्याय बन चुका है। कई म्युचुअल फंड और इनवेस्टमेंट कंपनियां अपने लोगों में पिगी बैंक का इस्तेमाल करती हैं। बचत और निवेश के भारतीय विज्ञापनों में भी पिगी बैंक्स नजर आते हैं। बैंकों में भी बचत खाते के लिए प्रतीकात्मक तौर पर पिगी बैंक्स का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं भारत के पारंपरिक गुल्लक के नाम पर ही मनी सेविंग ऐप्स भी आ चुके हैं।

...और अंत में बात पीएम मोदी वाले गुल्लक की

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को देखते हुए बिहार में मुजफ्फरपुर के एक कुम्हार ने पीएम मोदी के आकार के गुल्लक तैयार कर डाले थे। पीएम मोदी के आकार का गुल्लक बनाने वाले कुम्हार और मूर्तिकार जय प्रकाश के अनुसार यह गुल्लक बनाने में उन्हें लगभग 1 महीने का समय लगा था। बकौल जय प्रकाश इस मोदी गुल्लक में आप सिक्के और नोट दोनों रख सकते हैं।

जय प्रकाश का कहना है कि इससे ना सिर्फ लोग अपने बच्चों में बचत की आदत डलवा पाएंगे बल्कि वह बच्चों को नरेंद्र मोदी के बारे में भी बता सकते हैं।

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Suneet Singh author

सुनीत सिंह टाइम्स नाऊ नवभारत डिजिटल में बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर कार्यरत हैं। टीवी और डिजिटल पत्रकारिता में 13 साल का अनुभव है। न्यूज़रूम में डेस्क पर...और देखें

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