अध्यात्म

Pitru Paksha Katha: इस पौराणिक कथा को पढ़कर जानें श्राद्ध पक्ष का महत्व, देखें पितृपक्ष की कथा, कहानी हिंदी में

Pitru Paksha Katha in Hindi (पितृ पक्ष की कथा): पितृ पक्ष में पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए विशिष्ट कर्म किए जाते हैं, जिसे 'श्राद्ध' भी कहते हैं। अभी पितृ पक्ष चल रहा है। इस दौरान कुछ कथा और पौराणिक कहानियां पढ़कर आप पितृ पक्ष के महत्व के बारे में जान सकते हैं।
पितृ पक्ष व्रत कथा (pic credit: iStock)

पितृ पक्ष व्रत कथा (pic credit: iStock)

Pitru Paksha Katha in Hindi (पितृ पक्ष की कथा): पितृ पक्ष, भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक चलते हैं। इन 15 द‍िनों के दौरान प‍ितरों की आत्‍मा की शांत‍ि के लिए जो भी श्रद्धापूर्वक अर्प‍ित क‍िया जाए, उसे श्राद्ध कहते हैं। श्राद्ध की मह‍िमा को लेकर कई कथाएं भी प्रचल‍ित हैं, जिनका पाठ तर्पण करते हुए क‍िया जाता है। यहां से आप पितृ पक्ष की कथा पढ़ सकते हैं। यहां पितृ पक्ष की पौराणिक कहानियां देखें-

पितृ पक्ष की कथा\ दानवीर कर्ण की कहानी-

ब्राह्मणों को भोजन कराने के पीछे एक प्रसिद्ध कहानी है। कहा जाता है कि कुंतीपुत्र कर्ण ने अपने जीवनकाल में गरीब और जरूरतमंद लोगों को दान के रूप में बहुत सारी संपत्ति दे दी लेकिन उन्होंने कभी भोजन दान में नहीं दिया। मृत्यु के बाद कर्ण को स्वर्ग में कई विलासी और भौतिक सुख मिले लेकिन भोजन नहीं मिला। कहा जाता है कि कर्ण को सोने की थाली में खाने के लिए सोने की अशर्फियां ही परोसी जाती थीं। तब दानवीर कर्ण ने इंद्रदेव से जाकर इसका कारण पूछा।तब इंद्र ने कहा, "तुम दानवीर थे लेकिन तुमने अपने पूरे जीवन में सिर्फ सोने का ही दान दिया था। स्वर्ग में मनुष्य की आत्मा को वही खाने के लिए दिया जाता है, जिसे वो धरती पर दान करता है। तुमने मोह वश कभी अपने पूर्वजों का श्राद्ध-तर्पण भी नहीं किया इसलिए तुम्हें ऐसा खाना दिया जा रहा है। तब कर्ण ने कारण समझकर यमराज से 15 दिनों के लिए पृथ्वी पर वापिस भेजने का अनुरोध किया, ताकि वह ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन दान कर सकें। यमराज ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया और उन्हें एक पखवाड़े के लिए पृथ्वी पर भेज दिया। जब कर्ण वापस लौटा तो उसका स्वागत प्रचुर भोजन से किया गया। यह ब्राह्मण भोज का प्रतीक है और जीवन के बाद तृप्ति प्राप्त करने के लिए गरीबों को भोजन कराना एक प्रभावी अनुष्ठान है।

पितृ पक्ष स्पेशल महाभारत काल की कहानी-

महाभारत के युद्ध में वीरगति को प्राप्‍त होने के बाद कर्ण जब स्‍वर्ग पहुंचे तो उनको भोजन में स्‍वर्ण परोसा गया। इस पर कर्ण ने सवाल क‍िया तो उनको इंद्र देव ने उनको बताया क‍ि उन्‍होंने जीवन में सोना तो दान क‍िया लेक‍िन कभी भोजन का दान नहीं द‍िया। तब कर्ण ने इंद्र को बताया क‍ि उनको अपने पूर्वजों के बारे में जानकारी नहीं थी, इस वजह से वह कभी कुछ दान नहीं कर सके। यह जानकार इंद्र ने कर्ण को उनकी गलती सुधारने का मौका दिया और 16 दिन के लिए उनको पृथ्वी पर वापस भेजा गया, जहां उन्होंने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनका श्राद्ध कर उन्हें आहार दान किया। इन्हीं 16 दिन की अवधि को पितृ पक्ष कहा जाता है। वहां पितरों के नाम पर 'अगियारी' दे दी गई थी। पितरों ने उसकी राख चाटी और भूखे ही नदी के तट पर जा पहुंचे। थोड़ी देर में सारे पितर इकट्ठे हो गए और अपने-अपने यहां के श्राद्धों की बढ़ाई करने लगे। जोगे-भोगे के पितरों ने भी अपनी आपबीती सुनाई। फिर वे सोचने लगे- अगर भोगे समर्थ होता तो शायद उन्हें भूखा न रहना पड़ता, मगर भोगे के घर में तो दो जून की रोटी भी खाने को नहीं थी। यही सब सोचकर उन्हें भोगे पर दया आ गई और आशीर्वाद देकर चले गए। सांझ होने को हुई। भोगे के बच्चों ने अपनी मां से कहा- भूख लगी है। तब उन्हें टालने की गरज से भोगे की पत्नी ने कहा- आंगन में हौदी औंधी रखी है, उसे जाकर खोल लो और जो कुछ मिले, बांटकर खा लेना। बच्चे वहां पहुंचे, तो क्या देखते हैं कि हौदी मोहरों से भरी पड़ी है। वे दौड़े-दौड़े मां के पास पहुंचे और उसे सारी बातें बताईं। आंगन में आकर भोगे की पत्नी ने यह सब कुछ देखा तो वह भी हैरान रह गई। इस प्रकार भोगे भी धनी हो गया।

पितृ पक्ष की कथा-

पितृ पक्ष की पौराणिक कथा के अनुसार जोगे और भोगे नाम के दो भाई थे। दोनों अलग-अलग रहते थे। जोगे अमीर था और भोगे गरीब। दोनों भाइयों में तो प्रेम था लेकिन जोगे की पत्‍नी को धन का बहुत अभिमान था। वहीं, भोगे की पत्‍नी बड़ी सरल और सहृदय थी। पितृ पक्ष आने पर जोगे की पत्‍नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे उसे बेकार की बात समझकर टालने की कोशिश करने लगा। पत्‍नी को लगता था कि अगर श्राद्ध नहीं किया गया तो लोग बातें बनाएंगे। उसने सोचा कि अपने मायके के लोगों को दावत पर बुलाने और लोगों को शान दिखाने का यह सही अवसर है। फिर उसने जोगे से कहा, 'आप ऐसा शायद मेरी परेशानी की वजह से बोल रहे हैं। मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। मैं भोगे की पत्‍नी को बुला लूंगी और हम दोनों मिलकर सारा काप निपटा लेंगे।' इसके बाद उसने जोगे को अपने मायके न्‍यौता देने के लिए भेज दिया। अगले दिन भोगे की पत्‍नी ने जोगे के घर जाकर सारा काम किया। रसोई तैयार करके कई पकवान बनाए। काम निपटाने के बाद वह अपने घर आ गई। उसे भी पितरों का तर्पण करना था। दोपहर को पितर भूमि पर उतरे। पहले वह जोगे के घर गए। वहां उन्‍होंने देखा कि जोगे के ससुराल वाले भोजन करने में जुटे हुए हैं। बड़े दुखी होकर फिर वो भोगे के घर गए। वहां पितरों के नाम पर 'अगियारी' दे दी गई थी। पितरों ने उसकी राख चाटी और भूखे ही नदी के तट पर जा पहुंचे। थोड़ी ही देर में सारे पितर इकट्ठा हो गए और अपने-अपने यहां के श्राद्धों की बढ़ाई करने लगे। जोगे-भोगे के पितरों ने आपबीती सुनाई। फिर वे सोचने लगे कि अगर भोगे सामर्थ्‍यवान होता तो उन्‍हें भूखा न रहना पड़ता। भोगे के घर पर दो जून की रोटी भी नहीं थी। यही सब सोचकर पितरों को उन पर दया आ गई। अचानक वे नाच-नाच कर कहने लगे- 'भोगे के घर धन हो जाए, भोगे के घर धन हो जाए।' शाम हो गई। भोगे के बच्‍चों को भी खाने के लिए कुछ नहीं मिला था। बच्‍चों ने मां से कहा कि भूख लगी है। मां ने बच्‍चों को टालने के लिए कहा, 'जाओ! आंगन में आंच पर बर्तन रखा है। उसे खोल लो और जो कुछ मिले बांटकर खा लेना।' बच्‍चे वहां गए तो देखते हैं कि बर्तन मोहरों से भरा पड़ा है। उन्‍होंने मां के पास जाकर सारी बात बताई। आंगन में आकर जब भोगे की पत्‍नी ने यह सब देखा तो वह हैरान रह गई। इस तरह भोगे अमीर हो गया, लेकिन उसने घमंड नहीं किया। अगले साल फिर पितर पक्ष आया। श्राद्ध के दिन भोगे की पत्‍नी ने छप्‍पन भोग तैयार किया। ब्राहम्णों को बुलाकर श्राद्ध किया, भोजन कराया और दक्षिणा दी। जेठ-जेठानी को सोने के बर्तनों में भोजन कराया। यह सब देख पितर बड़े प्रसन्‍न और तृप्‍त हो गए।

पितृपक्ष की दूसरी कथा-

एक बार एक छोटा लड़का जिसका नाम राहुल था अपने दादा-दादी के साथ रहता था। उसके माता-पिता बचपन में ही गुजर गए थे। राहुल के दादा-दादी को उससे बहुत लगाव था। राहुल भी बहुत अपने दादा-दादी से बहुत प्रेम करता था। एक बार जब पितृ पक्ष आए तो राहुल ने दादा-दादी के साथ मिलकर अपने माता-पिता का श्राद्ध किया। श्राद्ध के बाद, राहुल ने अपने दादा-दादी से पूछा कि पितृ पक्ष क्यों मनाया जाता है। इस पर उसके दादा ने जबाव दिया कि इस पितृ पक्ष एक ऐसा समय है जब हम अपने मृत पूर्वजों को याद करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। साथ ही हम पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए उन्हें भोजन, पानी, और अन्य चीजें अर्पित करते हैं। राहुल ने अपने दादा की बात सुनकर यह महसूस किया कि पितृ पक्ष एक महत्वपूर्ण पर्व है और ये हमें अपने पूर्वजों को कभी न भूलने की शिक्षा देता है।

देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) पढ़ें हिंदी में और देखें छोटी बड़ी सभी न्यूज़ Times Now Navbharat Live TV पर। अध्यात्म (Spirituality News) अपडेट और चुनाव (Elections) की ताजा समाचार के लिए जुड़े रहे Times Now Navbharat से।

Srishti author

सृष्टि टाइम्स नाऊ हिंदी डिजिटल में फीचर डेस्क से जुड़ी हैं। सृष्टि बिहार के सिवान शहर से ताल्लुक रखती हैं। साहित्य, संगीत और फिल्मों में इनकी गहरी रूच...और देखें

End of Article

© 2025 Bennett, Coleman & Company Limited