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हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम रिजेक्ट होने पर तुरंत करें यह काम, हाथ जोड़ने लगेगी कंपनी

Health Insurance Claim: हेल्थ इंश्योरेंस को लेकर सबसे बड़ी दिक्कत यह होती है कि अक्सर कंपनियां क्लेम को रिजेक्ट कर देती हैं। आज की इस रिपोर्ट में हम आपको यही बताएंगे कि यदि हेल्थ इंश्योरेंस देने वाली कंपनी आपके क्लेम को रिजेक्ट कर देती है तो आपके क्या करना चाहिए और शिकायत करने का तरीका क्या है?
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health insurance claim/Photo-AI

भारत में हेल्थ इंश्योरेंस का बाजार काफी तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन साथ ही इंश्योरेंस देने वाली कंपनियों की मनमानी भी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। अभी हाल ही में कई इंश्योरेंस कंपनियों ने कहा है कि वे कैशलेस सुविधाएं बंद कर रही हैं यानी अब पहले आपको ही पैसे खर्च करने होंगे और बाद में पैसे वापस पाने के लिए जद्दोजहद भी करनी होगी। हेल्थ इंश्योरेंस को लेकर सबसे बड़ी दिक्कत यह होती है कि अक्सर कंपनियां क्लेम को रिजेक्ट कर देती हैं। आज की इस रिपोर्ट में हम आपको यही बताएंगे कि यदि हेल्थ इंश्योरेंस देने वाली कंपनी आपके क्लेम को रिजेक्ट कर देती है तो आपके क्या करना चाहिए और शिकायत करने का तरीका क्या है?

हेल्थ इंश्योरेंस क्या है?

सबसे पहले जानते हैं कि हेल्थ इंश्योरेंस होता क्या है। हेल्थ इंश्योरेंस भी अन्य बीमा पॉलिसियों की तरह होता है, बस फर्क इतना है कि इसमें आपके स्वास्थ्य से जुड़े खर्चे कवर किए जाते हैं। इसमें अस्पताल में भर्ती, सर्जरी, दवाइयां, एंबुलेंस चार्ज, और छोटे इलाज (डे-केयर ट्रीटमेंट) शामिल हो सकते हैं। कुछ पॉलिसियां कैशलेस ट्रीटमेंट की सुविधा भी देती हैं, जिससे आपको अस्पताल में पैसे नहीं देने पड़ते।

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हेल्थ इंश्योरेंस धारक के अधिकार

हेल्थ इंश्योरेंस सिर्फ कागज का टुकड़ा नहीं, बल्कि आपके और बीमा कंपनी के बीच कानूनी समझौता है। इसके तहत आपको कुछ अधिकार मिलते हैं, जैसे- समय पर इलाज और पारदर्शी जानकारी पाने का अधिकार, उचित और सही तरीके से क्लेम मिलने का अधिकार, अगर इनका पालन नहीं होता है तो आप कंपनी या संबंधित संस्था से शिकायत दर्ज कर सकते हैं।

24 घंटे से कम भर्ती होने पर भी क्लेम संभव

पहले अधिकतर पॉलिसियों में कम से कम 24 घंटे अस्पताल में भर्ती होना जरूरी था, लेकिन अब मेडिकल तकनीक इतनी आगे बढ़ गई है कि कई ट्रीटमेंट कुछ घंटों में ही हो जाते हैं। इन्हें डे-केयर ट्रीटमेंट कहा जाता है और ये खास तौर पर हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसियों में कवर होते हैं।

क्लेम करते समय किन बातों का ध्यान रखें?

  • इलाज डॉक्टर द्वारा आवश्यक और प्रिस्क्राइब्ड होना चाहिए।
  • मरीज को अस्पताल में भर्ती होना जरूरी है (डे-केयर ट्रीटमेंट भी मान्य है)।
  • ट्रीटमेंट आपकी पॉलिसी में कवर होना चाहिए।
  • सभी जरूरी डॉक्यूमेंट जैसे डॉक्टर की रिपोर्ट, बिल, डिस्चार्ज समरी, टेस्ट रिपोर्ट सुरक्षित रखें।
  • नेटवर्क अस्पताल में कैशलेस क्लेम चुनें, वरना रीइम्बर्समेंट के लिए सभी दस्तावेज जमा करें।
  • अस्पताल में भर्ती की सूचना तुरंत कंपनी या TPA को दें।

क्लेम रिजेक्ट होने के कारण

कई बार जानकारी की कमी और लापरवाही से क्लेम रिजेक्ट हो जाता है। जैसे- पॉलिसी में कवर न होने वाला इलाज, समय पर दस्तावेज जमा न करना, गलत या अधूरी जानकारी देना, इन गलतियों से बचना जरूरी है ताकि आपका क्लेम अटके नहीं।

अगर क्लेम रिजेक्ट हो जाए तो क्या करें?

सबसे पहले कंपनी के Grievance Cell में शिकायत करें। इसके बाद IRDAI की वेबसाइट पर ऑनलाइन शिकायत दर्ज कर सकते हैं। अपने क्षेत्र के Insurance Ombudsman से संपर्क करें। जरूरत पड़ने पर Consumer Court में केस दर्ज करें। आर्थिक रूप से कमजोर होने पर NALSA/SLSA के जरिए मुफ्त कानूनी मदद भी ले सकते हैं।

क्या OPD खर्च भी कवर होता है?

अधिकतर हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसियां OPD खर्च जैसे डॉक्टर की फीस, टेस्ट और दवाइयों को कवर नहीं करतीं, लेकिन कुछ खास पॉलिसियां या ऐड-ऑन कवर में यह सुविधा मिल सकती है। इसलिए पॉलिसी खरीदते समय ध्यान दें कि उसमें OPD कवर है या नहीं।

कैशलेस और रीइम्बर्समेंट क्लेम में अंतर

  • कैशलेस क्लेम: कंपनी सीधे अस्पताल का बिल चुकाती है, मरीज को पैसे देने की जरूरत नहीं पड़ती।
  • रीइम्बर्समेंट क्लेम: मरीज पहले खर्च करता है और इलाज के बाद सभी दस्तावेज जमा कर कंपनी से पैसा वापस लेता है।

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Pradeep Pandey author

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