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जमानत और अग्रिम जमानत याचिकाओं पर दो माह में हो फैसला; सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने जमानत और अग्रिम जमानत याचिकाओं पर बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि ऐसी अर्जियां अधिकतम दो माह के भीतर निपटाई जाएं। कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों को वर्षों तक लंबित रखना संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है।
जमानत और अग्रिम जमानत याचिकाओं पर दो माह में हो फैसला; सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश

व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ी याचिकाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने सभी हाई कोर्ट और निचली अदालतों को निर्देश दिया है कि जमानत और अग्रिम जमानत की अर्जी को अधिकतम दो महीने में निपटाया जाए। शीर्ष अदालत ने कहा कि जमानत देने में होने वाली देरी संविधान की आत्मा और नागरिकों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने देश की सभी हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट को जमानत और अग्रिम जमानत याचिकाओं को लटकाए रखने पर कड़ी टिप्पणी करते हुए सख्त निर्देश दिए हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह की याचिकाएं सीधे तौर पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ी होती हैं। कोर्ट ने साफ किया कि ऐसी याचिकाओं का निपटारा अधिकतम दो महीने में किया जाना चाहिए।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि जब किसी व्यक्ति की आजादी दांव पर लगी हो तो अदालतों को बेहद संवेदनशील रहते हुए जल्द से जल्द फैसला देना चाहिए। कोर्ट ने आगे कहा कि जमानत याचिकाओं को तय करने में होने वाली देरी न केवल आपराधिक प्रक्रिया संहिता के मकसद को निष्क्रिय कर देती है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 में में दिए गए मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन है।

जमानत में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनाया कड़ा रुख

सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई कि कई हाईकोर्ट में जमानत से जुड़ी याचिकाएं सालों तक लंबित रहती हैं। एक मामले का उदाहरण देते हुए कोर्ट ने कहा कि 2019 में दायर अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) की अर्जी 2025 तक लटकी रही। अदालत ने दो टूक कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों को अनिश्चित समय तक टालना अन्याय है।

जमानत को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश

सर्वोच्च अदालत ने अपने आदेश में कई ठोस दिशानिर्देश जारी किए। जिसके मुताबिक,

  • हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट ये सुनिश्चित करें कि जमानत और अग्रिम जमानत की अर्जी अधिकतम दो महीने में निपटाई जाए, केवल उन्हीं मामलों में देरी हो जहां याचिकाकर्ता जिम्मेदार हों।
  • सभी हाईकोर्ट निचली अदालतों को प्रशासनिक निर्देश जारी करें कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता विशेषकर जमानत से जुड़े मामलों को प्राथमिकता दी जाए और बिना ठोस कारण मामलों को टाला न जाए।
  • जांच एजेंसियों को समय पर जांच पूरी करने का आदेश दिया गया ताकि न तो आरोपी और न ही शिकायतकर्ता को किसी तरह का नुकसान झेलना पड़े।
  • देश के सभी हाईकोर्ट को यह भी कहा गया कि वे ऐसा सिस्टम बनाएं जिससे जमानत से जुड़ी याचिकाओं सालों तक लंबित न रहें।

संविधान की आत्मा से जुड़ा है जमानत का मुद्दा

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि संविधान ने हर नागरिक को समानता और जीवन के अधिकार के साथ स्वतंत्रता की गारंटी दी है। जब जमानत की अर्जी बिना किसी कारण के लंबित रहती है तो यह सीधे तौर पर इन अधिकारों का उल्लंघन करती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी आरोपी की जमानत याचिका को लटकाए रखना उसे तलवार की नोक पर रखने जैसा है। जिसका नतीजा यह होता है कि आरोपी अपने जीवन और भविष्य से जुड़ी हुई संभावना को लेकर अनिश्चितता की स्थिति में रहता है।

बॉम्बे हाई कोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने तीन आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिकाएं लंबित रखीं थी। आखिरकार उनकी याचिकाएं खारिज तो कर दी गईं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस देरी को अनुचित करार दिया। कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसे मामलों में आदेश जल्दी होना चाहिए ताकि समय से न्याय देने का न्यायपालिका का उद्देश्य पूरा हो सके।

सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश न्यायपालिका में सुधार के नजरिए से बेहद अहम माना जा रहा है। अदालत ने साफ किया है कि चाहे केस कितना भी जटिल क्यों न हो, जमानत से जुड़े मामलों को टालते रहना किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाएगा। यह फैसला न केवल अदालतों के लिए चेतावनी है बल्कि उन लाखों लोगों के लिए राहत की किरण भी है जिनकी जमानत याचिकाओं पर सालों से फैसला नहीं हुआ है।

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गौरव श्रीवास्तव author

टीवी न्यूज रिपोर्टिंग में 10 साल पत्रकारिता का अनुभव है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट से लेकर कानूनी दांव पेंच से जुड़ी हर खबर आपको इस जगह मिलेगी। साथ ही चुना...और देखें

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